आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। यूपी निकाय चुनाव में बीजेपी की भारी जीत को विपक्षियों ने ईवीएम में गड़बड़ी कर पायी गई सफलता करार दिया। जहां एक ओर बीजेपी पर अन्य पार्टी समेत सपा मुखिया ने भी ईवीएम में धांधली का आरोप लगाया है तो दूसरी समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव ने इस आरोप को खारिज कर कहा कि ईवीएम में कहीं भी कोई गड़बड़ी नहीं है। अभी तक तो इसका कोई सुबूत भी नहीं मिला है।
शिवपाल ने मैनपुरी में एक कार्यक्रम में ईवीएम पर उठ रहे सवाल पर साफ तौर से कहा कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं है। अभी तक तो खुल कर एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है। उन्होंने साफ कहा कि मैं तो ईवीएम से हुए चुनाव में जीता हूं अगर ईवीएम में गड़बड़ी होती तो मैं भी विधानसभा चुनाव नहीं जीतता। मेरे पास ईवीएम को लेकर कोई सुबूत नहीं है। कोई सुबूत होगा, तो इस पर बोलूंगा।
वहीं उन्होंने निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार पर तंज कसते हुए कहा कि हमें जिम्मेदारी मिली होती तो चुनाव में विजय होती। उन्होंने करहल में सपा के दूसरा प्रत्याशी घोषित करने और समर्थन दूसरे प्रत्याशी को देने के सवाल पर कहा कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है। शिवपाल ने कहा कि हमने जिनका समर्थन किया था, वह जीत गए। किसी का नाम लिए बगैर कहा कि उन्होंने जो प्रत्याशी उतारे, उसकी जिम्मेदारी उनकी ही थी।
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उन्होंने सपा की हार पर पार्टी नेताओं को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि जिन लोगों ने प्रत्याशी उतारे उन्हें हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अखिलेश के नेतृत्व में विधानसभा के बाद निकाय चुनाव में भी मिली हार के सवाल को टालते हुए कहा कि इस सवाल का जवाब अखिलेश से ही पूछा जाए। वहीं 2019 के लोकसभा पर बोलते हुए शिवपाल ने कहा चुनाव अभी दूर हैं। निकाय चुनाव सेमीफाइनल नहीं हैं।
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नियमों में परिवर्तन कर निर्वाचित प्रबंध कमेटी के स्थान पर अंतरिम प्रबंध कमेटी का प्राविधान करने संबंधी अध्यादेश पर शिवपाल यादव ने आज अपने एक बयाने में योगी सरकार को निशाना बनाते हुए कहा कि यह अध्यादेश शासन द्वारा सहकारी समितियों के प्रजातांत्रिक स्वरूप को समाप्त करने के रूप में सीधा हस्ताक्षेप है।
पूर्व कैबिनेट मंत्री ने कहा कि सहकारी निर्वाचन कार्यक्रम घोषित होने के बाद सहकारी समितियों के आधारभूत सिद्धांत में परिवर्तन करना न सिर्फ योगी सरकार की विवशता एवं हताशा को दर्शाता है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सरकार के त्रिरस्कार पूर्ण आचरण को भी प्रदर्शित करता है।
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उन्होंने आगे कहा कि सहकारी निर्वाचन आयोग एवं राज्य सरकार ने समय से सहकारी समितियों के निर्वाचन कराने की विफलता को छुपाने के लिए अध्यादेश के माध्यम से जनता की आवाज को दबाने व कुचलने का कुत्सित प्रयास किया है।
निकट भविष्य में विधान मंडल का सत्र आहूत किया जा चुका है। ऐसी दशा में अध्यादेश के माध्यम से नियमों में परिवर्तन राज्य सरकार द्वारा संविधान एवं विधान मंडल की उपेक्षा दर्शाता है। सरकार द्वारा जल्दबाजी में जारी अध्यादेश नियम विरूद्ध एवं औचित्यहीन है