आरयू ब्यूरो, लखनऊ। उर्वरकों के असंतुलित उपयोग से मृदा में कार्बनिक पदार्थ, जैविक गतिविधि में कमी आयी है तथा सिंचित खेती वाले क्षेत्रों में मृदा एवं सिंचाई के पानी की लवणता तथा अतिवृष्टि मृदा उत्पादकता की गिरावट के प्रमुख कारण हैं।
उक्त बातें सोमवार को यूपी कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) द्वारा भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धिति विषय पर आयोजित वेबिनार में बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कही।
कृषि मंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आगे कहा कि रासायनिक खेती से जहां एक ओर कृषि भूमि पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अत्यधिक रसायनों के प्रयोग से कृषि लागत में भी वृद्धि हो रही। वर्तमान परिस्थितियों में न्यूनतम लागत खेती प्रथाओं ने किसानों की कृषि लागत में कमी की है और किसानों के लिए उच्च पैदावार, उपभोक्ताओं के लिए रसायन मुक्त भोजन और बेहतर मृदा उर्वरता का वादा किया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में आज जैविक उत्पादों की मांग भी बढ़ी है और एक्सपोर्ट क्वालिटी उत्पाद होने के नाते उत्पाद का निर्यात अन्य देशों में किया जा रहा है। इससे जहां एक ओर किसानों की लागत में कमी आयी है, वहीं दूसरी ओर उनकी आमदनी में भी वृद्धि हुयी है।
रसायनों के उपयोग से बढ़ रहीं बीमारियां: आचार्य देवव्रत
इस मौके पर वेबिनार के मुख्य अतिथि गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किये जाने से जहरयुक्त कृषि से निजात मिलेगी एवं पर्यावरण भी स्वच्छ एवं शुद्ध होगा। उन्होंने बताया कि कुरूक्षेत्र के गुरूकुल में 200 एकड़ भूमि प्राकृतिक खेती के लिए विकसित की गयी है। रासायनिक खेती के 60 से 70 सालों के बाद इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। यूरिया तथा डीएपी के प्रयोग से मृदा की उर्वरा शक्ति कम हो रही तथा मृदा का जीवांश कार्बन अत्यंत ही कम हो गया, जो चिंता का विषय है। इसके साथ-साथ रसायनों के उपयोग से मनुष्यों में बीमारियां बढ़ रही हैं।
मंडियों में एफपीओ द्वारा की जा सकती है जैविक उत्पादों की बिक्री
इस मौके पर अपर मुख्य सचिव कृषि, डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि सभी मंडलीय मंडियों में दिन निर्धारित करते हुए एफपीओ द्वारा जैविक उत्पादों की बिक्री की जा सकती है। उन्होंने बताया कि आर्गेनिक टेस्टिंग के लिये और भी लैब खोली जा रही हैं। साथ ही मंडी परिषद में आर्गेनिक उत्पादों के परीक्षण के लिए कलेक्शन सेंटर खोला जायेगा तथा इसकी टेस्टिंग बिना मूल्य के की जायेगी।
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उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती अपनाने से गोवंश में वृद्धि, मृदा स्वास्थ्य में सुधार, रासायनिक उर्वरक के प्रयोग में कमी, फलस्वरूप कृषि लागत में कमी आयेगी तथा जैविक उत्पाद प्रयोग करने से मानव स्वास्थ्य में सुधार होगा।
कार्यक्रम में पूर्व निदेशक बीज प्रमाणीकरण संस्था डा. बी.पी. सिंह ने प्राकृतिक उत्पादों के प्रमाणीकरण तथा उनकी ब्रान्डिंग के विषय में विस्तार से प्रकाश डाला। यूपी के कृषि निदेशक डा. ए.पी. श्रीवास्तव, ने नमामि गंगे परियोजना में की जा रही प्राकृतिक खेती के संबंध में जानकारी दी। कृषि समृद्धि आयोग एवं लोक भारतीय कार्यालय के सदस्य कृष्ण चौधरी ने जीरो बजट कृषि पर यूपी के किसानों का अनुभव एवं उनकी वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला गया। इसके अलावा भारत भूषण गर्ग, रवींद्र वर्मा और रमाकांत त्रिपाठी ने भी विचार व्यक्त किए।