आरयू ब्यूरो, लखनऊ। मायावती सरकार में लखनऊ और नोएडा में बनाए गए स्मारक में हुए घोटाले की जांच कर रही उप्र सतर्कता अधिष्ठान की टीम ने शुक्रवार को राजकीय निर्माण निगम (आरएनएन) के चार बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। ये चारों अधिकारी इस समय सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
जानकारी के अनुसार विजिलेंस ने जिन अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है। उनमें इकाई प्रभारी रामेश्वर शर्मा, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार, महा प्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी और वित्तीय परामर्शदाता विमल कांत मुद्गल शामिल हैं।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा था। शासन से अभियोजन मिलने के बाद से विजिलेंट टीम इन सभी अधिकारियों को तलाश रही थी। गिरफ्तार करने के बाद सभी को कोर्ट में पेश कर दिया गया। वहीं सूत्रों का कहना है कि जल्द ही विजिलेंस की टीम आरएनएन, लखनऊ विकास प्राधिकरण समेत कई अन्य अधिकारियों पर के खिलाफ भी शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है।
मालूम हो कि स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले की शिकायत पर तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने जांच कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें स्मारकों के निर्माण में करीब 1400 करोड़ के घोटाले की आशंका जताते हुए इस मामले की विस्तृत जांच सीबीआइ या एसआइटी से कराने की संस्तुति की थी, लेकिन अखिलेश सरकार ने दोनों ही संस्थाओं को जांच न देकर विजिलेंस को जांच सौंप दी थी। इसके बाद विजिलेंस ने गोमती नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराने के बाद जांच तो शुरू की, लेकिन जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि सपा शासनकाल में कोई प्रगति नहीं हुई।
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बसपा के शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर लखनऊ और नोएडा में भव्य स्मारक बनवाए थे। वर्ष 2007-12 के बीच बसपा के शासनकाल में कई पार्कों और मूर्तियों का निर्माण कराया गया। इसी दौरान लखनऊ और नोएडा में दो ऐसे बड़े पार्क बनवाए गए, जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती, बसपा संस्थापक कांशीराम व भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अलावा पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की सैकड़ों मूर्तियां लगवाई गईं थी।
दोनों शहरो के पास इलाके में बनाए गए स्मारकों के पत्थर की ढुलाई के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च दिखाने के साथ बाजार दर से काफी ऊंचे दाम पर पत्थरों मंगाए गए थे। इसी प्रकार पत्थरों को कागज में राजस्थान ले जाकर तराशने और कटिंग कराना दिखाया गया था, जबकि ये काम मिर्जापुर में ही मशीन लगाकर की गई थी। खनन नियमों के खिलाफ कंसोर्टियम बनाने केसाथ ही 840 रुपये प्रति घनफुट के हिसाब से अधिक वसूली करने का भी आरोप था।