आरयू वेब टीम।
दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठी बहस का असर बीती रात दिवाली के पटाखों के शोर और आज सुबह प्रदूषण में साफ देखने को मिला। सेहत के प्रति बेपरवाह दिल्लीवासियों ने बीती रात जमकर पटाखे फोड़ें। जिसके चलते दुनिया के प्रदूषित शहरों में गिनी जाने वाली दिल्ली की हालत और ज्यादा खराब हो गई। दिल्ली के अधिकतर इलाके धुंध और धुंए की चपेट में नजर आए। सुबह का नजारा देख एक बार दिल्लीवासी भी सहम गए हैं।
शहर के प्रदूषण निगरानी स्टेशन के ऑनलाइन संकेतक ने भी हवा की गुणवत्ता बेहद खतरनाक बताई है। पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा हवा में तेजी से बढ़ गई। यह कण श्वसन प्रणाली में चले जाते हैं और ब्लडस्ट्रेम में पहुंच कर सेहत को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाते हैं।
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वहीं दिल्ली में प्रदूषण का सूचकांक बढ़कर 350 के पार पहुंच गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार आज सुबह छह बजे दिल्ली में प्रदूषण सूचकांक 351 दर्ज किया गया जो बेहद खराब की श्रेणी में आता है। इस स्थिति में मौसम की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसने शनिवार और रविवार को दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंचने की चेतावनी दी है। शनिवार को सूचकांक 471 पर और रविवार को 409 पर पहुंच सकता है।
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दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आर के पुरम निगरानी स्टेशन ने रात करीब 11 बजे पीएम 2.5 का स्तर 878 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर और पीएम 10 का स्तर 1,179 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर था। प्रदूषक ने 24 घंटे के दौरान सुरक्षा की सीमा का 10 गुणा तक उल्लंघन किया जो क्रमश: 60 और 100 होनी चाहिए थी। कुछ जगाहों पर प्रदुषण 24 गुना तक बढ़ें होने की डराने वाली बात सामने आई है।
इसके साथ ही गाजियाबाद में दिवाली की रात पीएम 2.5 का स्तर 500 और पीएम 10 का स्तर 800 से ज्यादा आया है। वातावरण में सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा भी रात 12 बजे तक मानकों से 5 गुना तक बढ़ गई थी।
आइये जानते है आखिर क्या है पीएम 2.5
बताते चलें कि दिल्ली की हवा जहरीली गैसों की मौजूदगी से प्रदूषित नहीं है बल्कि यह सूक्ष्म कणों से प्रभावित है जिसे पीएम 2.5 के नाम से जाना जाता है। पीएम कण के बारे में बताता है जबकि उसके आगे की संख्या उस कण के आकार को बताता है। इसलिए पीएम 2.5 बेहद छोटे सूक्ष्म कण है जिसका साइज 2.5 माइक्रॉन है। यह साइज हवा की मोटाई से 30 गुना कम है।
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छोटे साइज की वजह से इन कणों को शरीर में घुसने से नहीं रोका जा सकता। दिल्ली की हवा में इसकी मौजूदगी निर्धारित मानक से कहीं ज्यादा है। इसके चलते लोगों को तेजी से गंभीर बिमारी हो रही है। यह सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्गों को अपनी चपेट लेकर घातक नुकसान पहुंचाता है।
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