पूर्व वित्‍त मंत्री बोले, “नोटबंदी पर असहमतिपूर्ण फैसला अनियमितता की ओर कर रहा इशारा”

पूर्व वित्‍त मंत्री
पी चिदंबरम (फाइल फोटो।)

आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटबंदी के खिलाफ डाली गई 58 याचिकाएं पर नोटों को बंद करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा है, और नोटबंदी को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए पांच जजों की संविधान पीठ ने 4-1 से मोदी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। वहीं एक जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने फैसले पर अपनी असहमति भी जताई है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार का आठ नवंबर का नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था। वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा की फैसले का असहमति हिस्सा अनियमितताओं की ओर इशारा करता है।

चिदंबरम ने एक बयान में कहा, “एक बार माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कानून घोषित कर दिया है, हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं, हालांकि यह इंगित करना जरूरी है कि बहुमत ने निष्कर्ष निकाला कि घोषित उद्देश्यों को नोटबंदी से हासिल नहीं किया गया था।” अल्पमत ने नोटबंदी की अवैधता और अनियमितता का इशारा किया।

वास्तव में, बहुमत ने इस सवाल को स्पष्ट कर दिया है कि क्या उद्देश्यों को हासिल किया गया था। हम खुश हैं कि अल्पमत के फैसले ने नोटबंदी में अवैधता और अनियमितताओं की ओर इशारा किया है। यह सरकार के लिए चेतावनी है, लेकिन यह स्वागत योग्य है।

पूर्व वित्तमंत्री ने कहा कि असहमति का फैसला “माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में दर्ज प्रसिद्ध असहमतियों में शामिल होगा।” सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार के 2016 में 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी के फैसले को जायज ठहराया है।

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न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ और न्यायमूर्ति बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना ने केंद्र के साल 2016 के 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। बताते चलें कि पांच जजों में से न्यायमूर्ति नागरत्न का मत बहुमत से अलग था। उन्होंने असहमतिपूर्ण निर्णय दिया।

बहुमत का फैसला सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को सिर्फ इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार से आया था। पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में काफी संयम बरतना होता है और कार्यपालिका के ज्ञान को अदालत अपने विवेक से नहीं दबा सकती।

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