आरयू वेब टीम।
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को राफेल मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा करते हुए कहा कि इन्हें बिना मंजूरी के पेश नहीं किया जा सकता। वहीं, एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सरकार के दावे का विरोध करते हुए कहा कि राफेल के जिन दस्तावेजों पर अटार्नी जनरल विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं, वे प्रकाशित हो चुके हैं और पब्लिक डोमेन में हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र की प्रारंभिक आपत्ति पर फैसला करने के बाद ही मामले के तथ्यों पर विचार करेंगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया।
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पीठ राफेल डील मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। ये पुनर्विचार याचिका पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी, एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दायर कर रखी हैं। अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि वह लीक दस्तावेजों को पुनर्विचार याचिका से हटा दें क्योंकि यह दस्तावेज विशेषाधिकार की श्रेणी में आते हैं। तब कोर्ट ने पूछा कि आप किस तरह के विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं? इन्हें पहले ही कोर्ट में पेश किया जा चुका है। दस्तावेज पहले से ही सार्वजनिक हो चुके हैं।
इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि दस्तावेजों को चुराकर कोर्ट में पेश किया गया है। राज्य के दस्तावेजों को बिना मंजूरी के प्रकाशित नहीं किया जा सकता है। साक्ष्य कानून के प्रावधानों के तहत कोई भी संबंधित विभाग की मंजूरी के बिना कोर्ट में गोपनीय दस्तावेजों को पेश नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आरटीआइ का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां तक कि खुफिया एजेंसी और सुरक्षा प्रतिष्ठान भी भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के उल्लंघन के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य हैं। राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है।
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एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा कि अटार्नी जनरल जिन दस्तावेजों के लिए विशेषाधिकार की बात कर रहे हैं, वे प्रकाशित हो चुके हैं और पब्लिक डोमेन में हैं। आरटीआइ के प्रावधान हैं कि जनहित अन्य चीजों से सर्वोपरि है और खुफिया एजेन्सियों से जुड़े दस्तावेजों पर किसी तरह के विशेषाधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि राफेल डील में सरकार और सरकार के बीच कोई करार नहीं है, क्योंकि इसमें फ्रांस ने कोई संप्रभु गारंटी नहीं दी है। प्रशांत भूषण ने कहा कि पत्रकार के लिए किसी भी कानून में सोर्स बताने की पाबंदी नहीं है।