आरयू वेब टीम। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को धर्म बदलकर शादी करने के एक मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि किसी को भी अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो। यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल तत्व है। दो लोग अगर राजी-खुशी से एक साथ रह रहे हैं तो इस पर किसी को आपत्ति लेने का हक नहीं है।
ये आदेश जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने कुशीनगर के सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ आलिया की याचिका पर दिया है। बेंच ने प्रियांशी उर्फ समरीन और नूरजहां बेगम उर्फ अंजली मिश्रा के केस में इसी हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसलों से असहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि दोनों मामलों में दो बालिगों को अपनी मर्जी से साथी चुनने और उनके साथ रहने की स्वतंत्रता के अधिकार पर विचार नहीं किया गया है। ये फैसले सही कानून नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि दोनों बालिग हैं और 19 अक्टूबर 2019 को उन्होंने मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह किया है। इसके बाद प्रियंका ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। वे एक साल से पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। प्रियंका के पिता ने इस रिश्ते का विरोध करते हुए एफआइआर दर्ज कराई है, जिसके खिलाफ उन्होंने याचिका दाखिल की थी।
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याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने पर रोक है और ऐसे विवाह की कानून में मान्यता नहीं है। बेंच ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं को हिंदू और मुस्लिम की नजर से नहीं देखते। ये दो बालिग हैं, जो अपनी मर्जी और पसंद से एक साल से साथ रह रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि निजी रिश्तो में हस्तक्षेप करना व्यक्ति की निजता के अधिकार में गंभीर अतिक्रमण है, जिसका उसे संविधान के अनुच्छेद 21 में अधिकार प्राप्त है। इसी के साथ कोर्ट ने युवती के पिता की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर खारिज कर दी है। याचिका में कुशीनगर के विष्णुपुरा थाने में 25 अगस्त 2019 को दर्ज आईपीसी की धारा 363, 366, 352, 506 और पोक्सो एक्ट की धारा 7/8 की एफआइआर रद्द करने की मांग की गई थी।