आरयू वेब टीम।
उत्तर प्रदेश में लाख कोशिशों और प्रदर्शन के बाद करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों की समान कार्य व समान वेतन की मांग भले ही पूरी नहीं हो पायी हो, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में निर्धारित मानदेय पर कार्यरत करीब साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों को ‘समान कार्य के बदले समान वेतन’ देने से जुड़े मामले की सुनवाई कर बिहार सरकार को फटकार लगाई। साथ ही चीफ सेक्रेटरी को एक कमेटी गठित कर पूरी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।
शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि जब आपने नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की, तब उनकी योग्यता पर आपत्ति क्यों नहीं जतायी? समान कार्य के लिए समान वेतन देने की बात सामने आने पर उनकी योग्यता पर प्रश्न उठा रहे हैं।
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कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर नियोजित शिक्षकों की योग्यता से संबंधित मामले की जांच कर पूरी रिपोर्ट सौंपें। साथ ही पटना हाईकोर्ट के 31 अक्टूबर, 2017 के फैसले को लागू करने में परेशानी के बारे में विस्तृत रिपोर्ट दें।
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 में हरियाणा से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए पहली बार समान काम के बदले समान वेतन देने का निर्देश संबंधित राज्य सरकार को दिए थे। इसके बाद बिहार के नियोजित शिक्षक संगठनों ने भी सरकार से समान काम के बदले समान वेतन की मांग की, लेकिन सरकार द्वारा नियोजित शिक्षक संगठनों की मांग नहीं मांगे जाने पर वे पटना हाईकोर्ट चले गए।
मामले में पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए 31 अक्तूबर, 2017 को नियोजित शिक्षकों के हक में फैसला दे दिया। साथ ही सरकार को निर्देश दिया कि वह नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन दे।
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