समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बीते फरवरी में धारा 377 को हटाने के लिए लखनऊ में निकाली गयी गौरव यात्रा की एक तस्वीर।

आरयू वेब टीम। 

समलैंगिकता को अवैध बताने वाली आइपीसी की धारा 377 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने दो व्यस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को आपराध मानने वाली धारा 377 को खत्म कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही है।

सुनवाई करते हुए जजों ने कहा कि समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्‍त होना चाहिए। हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इंद्रधनुषी झंडा एलजीबीटी समुदाय का प्रतीक है। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को मनमाना बताया।

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वही मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविल्कर ने कहा कि समान लिंग वाले लोगों के बीच रिश्ता बनाना अब धारा 377 के तहत नहीं आएगा। अब यह अपराध नहीं है। लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। मैं जो हूं वो हूं। लिहाजा जैसा मैं हूं उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाए।

बता दें कि 17 जुलाई को शीर्ष कोर्ट ने चार दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा कर पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि वो जांच करेंगे कि क्या जीने के मौलिक अधिकार में ‘यौन आजादी का अधिकार’ शामिल है, विशेष रूप से नौ न्यायाधीश बेंच के फैसले के बाद कि ‘निजता का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है।