आरयू वेब टीम। बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के मामले को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बेंच ने फैसला सुनाते हुए दोषियों की सजा माफी का गुजरात की भाजपा सरकार का आदेश रद्द कर दिया है। उच्चतम न्यायालय के इस आदेश के बाद हत्या-गैंगरेप के दोषियों का जेल जाना तय हो गया है। अदालत ने सभी 11 दोषियों को 14 दिन के अंदर जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का आदेश दिया है।
आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार फैसला लेने के लिए उचित सरकार नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट का 2022 का फैसला भी रद्द हो गया है। इसमें गुजरात सरकार को उचित सरकार बताया गया था और साथ ही कहा गया था कि 1992 की नीति पर विचार करें।
फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी कोर्ट ने कहा कि क्या दोषियों को फिर जेल भेजा जाए, ये सवाल हमारे सामने है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषियों की रिहाई के लिए गुजरात सरकार सक्षम नहीं है। रिहाई देने में महाराष्ट्र सरकार सक्षम सरकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य जहां अपराधी पर ट्रायल चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वह दोषियों को माफी याचिका पर फैसला करने में सक्षम है। सक्षमता की कमी के कारण गुजरात सरकार द्वारा छूट के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 13 मई, 2022 का फैसला भी “प्रति इंक्यूरियम” (कानून की दृष्टि से खराब) है, क्योंकि इसने छूट के लिए उपयुक्त सरकार के संबंध में संविधान पीठ के फैसले सहित बाध्यकारी मिसालों का पालन करने से इनकार कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात के पास छूट का फैसला करने की शक्ति है और 1992 की छूट नीति, जो हत्या, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार के लिए छूट की अनुमति देती है, लागू है। जस्टिस नागरत्ना ने यूनानी दार्शनिक की इस बात पर जोर दिया था कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि सुधार के लिए दी जानी चाहिए। प्लेटो का कहना है कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि सुधार के लिए है। उपचारात्मक सिद्धांत सजा की तुलना दवा से की जाती है। यदि किसी अपराधी का इलाज संभव है तो उसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह सुधारात्मक सिद्धांत का हृदय है। यदि किसी अपराधी का इलाज संभव है तो उसे शिक्षा और अन्य कलाओं द्वारा सुधारना होगा।
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जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सवाल ये है कि क्या समय पूर्व रिहाई दी जा सकती है? हम पूरी तरह कानूनी सवाल पर जाएंगे, लेकिन पीड़ित के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। नारी सम्मान की पात्र है, क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है? ये वो मुद्दे हैं, जो उठते हैं। हम योग्यता और सुनवाई योग्य होने, दोनों के आधार पर उपरोक्त दार्शनिक आधार के आलोक में रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं।
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वहीं जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि गुजरात सरकार की छूट के आदेश पारित करने की क्षमता को लेकर यह स्पष्ट है कि उपयुक्त सरकार को छूट के आदेश पारित करने से पहले अदालत की अनुमति लेनी होगी। इसका मतलब है कि घटना का स्थान या दोषियों की कारावास की जगह छूट के लिए प्रासंगिक नहीं है। उपयुक्त सरकार की परिभाषा अन्यथा है। सरकार का इरादा यह है कि जिस राज्य के तहत दोषी पर ट्रायल चलाया गया और सजा सुनाई गई, वह उचित सरकार थी। इसमें ट्रायल की जगह पर जोर दिया गया है, न कि जहां अपराध हुआ।
हत्या व गैंगरेप के इन 11 दोषियों की हुई थी रिहाई
गौरतलब है कि 15 अगस्त, 2022 को गुजरात की भाजपा सरकार ने उम्रकैद के सभी 11 दोषियों की सजा कम करते हुए उन्हें आजादी के अमृत महोत्सव के तहत रिहा करने का फैसला किया था। जिसके बाद राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदनिया, राजीवभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया को जेल से रिहा कर दिया गया था। सरकार के इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ था।
इस रिहाई के खिलाफ 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की गई थी। अन्य याचिका में सुप्रीम कोर्ट के मई में दिए आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी।
साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान गर्भवती बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने के साथ ही हैवानों ने उनके परिवार के सात सदस्यों की बेरहमी से हत्या भी कर दी थी। इस कांड के बाद देशभर में हंगामा मच गया था। तत्कालीन भाजपा सरकार पर भी गंभीर आरोप लगे थे।