आरयू ब्यूरो,लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने महिला अपराध के मामलों में आरोपितों को अब अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी। शुक्रवार को विधानसभा में सीआरपीसी (संशोधन) विधेयक 2022 पारित किया गया। यह आरोपितों को अग्रिम जमानत देने पर रोक लगाता है। यूपी संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने सदन में संशोधन विधेयक को लेकर कहा कि पोक्सो एक्ट और महिलाओं के साथ हो रहे अपराध के आरोपितों को अग्रिम जमानत नहीं देने का प्रावधान किया गया है। इससे आरोपित को पीड़ित और अन्य गवाहों को डराने और परेशान करने से रोकने में भी मदद मिलेगी।
मिली जानकारी के मुताबिक, सदन में विधेयक पर मंत्री ने कहा कि युवा लोगों और महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में अग्रिम जमानत से इनकार करने से आरोपितों के सबूत नष्ट करने की संभावना कम हो जाएगी। सुरेश खन्ना ने यह भी कहा कि यह प्रावधान आरोपित को पीड़ित और अन्य गवाहों को डराने या परेशान करने से रोकने में भी मदद करेगा। सीआरपीसी में बदलाव होने से महिलाओं के खिलाफ होने वाले गंभीर आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत के प्रावधान को खत्म कर दिया जाएगा, हालांकि अब गृह मंत्रालय की मंजूरी जरूरी है।
योगी के मंत्री ने कहा कि अब पीड़ित या उस व्यक्ति का आश्रित जिसका जीवन अशांति या दंगे में चला गया है, मुआवजे के लिए अपील कर सकता है। खन्ना ने यह भी कहा कि संशोधन के साथ, दावा न्यायाधिकरण को भी ऐसे मामलों का खुद संज्ञान लेने का अधिकार होगा। संशोधन विधेयक में यह भी प्रावधान है कि ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई की लागत दोषियों द्वारा वहन की जाएगी।
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खन्ना ने कहा कि संशोधन विधेयक दंगों में मारे गए किसी भी व्यक्ति को पांच लाख की क्षतिपूर्ति करने का अधिकार देता है। मुआवजे की राशि दोषी व्यक्ति से वसूल की जाएगी। सरकार ने पहले इस तरह की वसूली के लिए दावा न्यायाधिकरण का गठन करने के लिए ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम, 2020’ लागू किया था। संशोधन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार होगा, यह निर्धारित करने की व्यवस्था को भी स्पष्ट किया गया है।