आरयू वेब टीम। जजों की नियुक्ति मामले में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव जारी है। इस बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सीजेआइ को पत्र लिखकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है। साथ ही जजों की नियुक्ति की संवैधानिक प्रक्रिया में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि शामिल करने का सुझाव भी दिया।
साथ ही मोदी सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में, जबकि संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाई कोर्ट कॉलेजियम में शामिल करने का सुझाव भी शामिल है। इस पत्र में कहा गया कि ये पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही के संचार के लिए” जरूरी है। सूत्रों के मुताबिक सीजेआइ डी वाई चंद्रचूड़ को कानून मंत्री किरेन रिजिजू का पत्र संवैधानिक अधिकारियों द्वारा आलोचना की कड़ी में किया है।
दरअसल उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट पर अक्सर विधायिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने के बाद केंद्रीय कानून मंत्री ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को एससी कॉलेजियम में शामिल किया जाए और संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को एचसी कॉलेजियम में शामिल किया जाए।
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पत्र में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रूमा पाल के बयानों का हवाला भी दिया गया है, जिसमें उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का मानना है कि ये सुझाव सरकार द्वारा एनजेएसी को पिछले दरवाजे से लाने की कोशिश है।
दरअसल रिजिजू ने हाल ही में कॉलेजियम प्रणाली की लगातार आलोचना की है, इसे “अपारदर्शी”, “संविधान के लिए एलियन” और दुनिया में एकमात्र प्रणाली बताया था जहां न्यायाधीश ऐसे लोगों को नियुक्त करते हैं जिनको वो जानते हैं ।
एनजेएसी को रद्द करने के बारे में वीपी धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का 2015 का राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को खारिज करने का फैसला संसदीय संप्रभुता के साथ गंभीर समझौते और जनादेश की अवहेलना का उदाहरण था। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी उपराष्ट्रपति की बात का समर्थन किया था।