आरयू वेब टीम।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का मंत्रियों तथा सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से बचाने तथा मीडिया को ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग से रोकने वाले एक अध्यादेश को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस अध्यादेश से केवल विपक्षीय दल और पत्रकार ही नहीं नाराज दिख रहे हैं बल्कि खुद उनकी ही पार्टी के कुछ नेता भी इस पर आपत्ति जता रहे हैं। विरोधों को देखते बैक फुट पर आयी मुख्यमंत्री वसुंधरा ने बीती रात बैठक बुलाकर अध्यादेश की एक पैनल द्वारा समीक्षा कराए जाने का निर्णय लिया है।
बताते चलें कि पिछले माह अध्यादेश के ज़रिए लागू किए गए कानून में अदालतों पर भी सरकार की अनुमति के बिना मंत्रियों, विधायकों तथा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी शिकायत पर सुनवाई से रोक लगाई गई है। अध्यादेश के कानून के मुताबिक मंज़ूरी लिए बिना किसी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित करने पर मीडिया को भी अपराधी माना जाएगा, और पत्रकारों को इस अपराध में दो साल तक की कैद की सज़ा सुनाई जा सकती है।
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हांलाकि उनके इस अध्यादेश का विरोध कांग्रेस ने सदन में तो पत्रकारों ने सड़को पर मार्च निकाल कर किया। इस अध्यादेश की आलोचना करने वालों में न सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता हैं बल्कि बीजेपी के सत्ताधारी विधायकों ने भी सार्वजनिक रूप से बिल के प्रति विरोध जताते हुए मीडिया से कहा कि यह कानून भ्रष्टाचारियों को संरक्षण और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।
वहीं घनश्याम तिवारी ने इस बिल की तुलना वर्ष 1975 में लागू की गई एमरजेंसी से करते हुए कहा कि यह हमारी पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ है। हमने एमरजेंसी का विरोध इसलिए नहीं किया था ताकि बीजेपी की सरकार आकर इस तरह का कानून बनाए। अध्यादेश को हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई है, और याचिका में कहा गया है कि इस कानून से ‘समाज के एक बड़े हिस्से को अपराध करने का लाइसेंस मिल सकता है।