आरयू वेब टीम। दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, पंजाब व हरियाणा में बढ़ते प्रदूषण ने आम इंसान की जिंदगी खतरें में डाल दी है। वहीं अब इस जानलेवा समस्या की गंभीरता को समझते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने बेहद सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए न सिर्फ सरकारों पर तल्ख टिप्पणियां की हैं, बल्कि पंजाब, हरियाणा व यूपी के मुख्य सचिवों को तलब भी कर लिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी कहा है कि वह हर साल बनने वाले इस स्थिति पर लगाम लगाने के लिए रोडमैप पेश करे। कोर्ट ने इसके लिए तीन हफ्ते दिए हैं।
दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में नहीं कटनी चाहिए बिजली
प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए कहा कि राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करें कि डीजल जेनेरेटर का इस्तेमाल नहीं हो। साथ ही आदेश दिया है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बिजली किसी भी कीमत पर नहीं कटनी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि दिल्ली-एनसीआर में अगर कोई निर्माण और अन्य नियमों का उल्लंघन करता पाया जाता है तो उस पर एक लाख रुपये रुपये का फाइन लगेगा। वहीं, कूड़ा जलाने पर 5000 रुपये फाइन होगा। कोर्ट ने इसी के साथ दिल्ली नगर निगम को निर्देशित किया है कि खुला कूड़ा घर ढकने का इतंजाम करें।
दक्षिणी पंजाब में बड़े पैमाने पर जलाई गई पराली
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित कमेटी ईपीसीए की रिपोर्ट पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह बताया गया कि इस साल हरियाणा ने पराली जलाने पर काफी हद तक लगाम लगाई है, लेकिन पंजाब ने इस मसले पर बेहद गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया है। सैटेलाइट तस्वीरों से यह साफ हो रहा है कि खासतौर पर दक्षिणी पंजाब में बड़े पैमाने पर पराली जलाई गई है।
इन सरकारों का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना
जस्टिस अरुण मिश्रा और दीपक गुप्ता की बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हम कई सालों से इस मसले पर निर्देश दे रहे हैं, लेकिन राज्य सरकारें हमारे निर्देशों के पालन में नाकाम रही हैं। इन सरकारों का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना है। लोगों के जीवन के अधिकार का हनन हो रहा है। उनके स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा है। घर के अंदर भी हवा शुद्ध नहीं है, लेकिन सरकारों का ध्यान इस तरफ नहीं है।”
कोर्ट ने आगे कहा, “यह परेशान करने वाली बात है कि हर साल दस से 15 दिनों तक दिल्ली के लोगों का दम घोटा जाता है, पर इस बारे में कोई कुछ नहीं कर रहा है। हम ऐसी स्थिति को जारी नहीं रहने दे सकते।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं होती हैं। हम यह साफ कर देना चाहते हैं अब से ऐसी एक भी घटना अगर होती है तो उसके लिए मुख्य सचिव से लेकर ग्राम पंचायत तक एक-एक सरकारी अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा। उस पर कोर्ट सख्त कार्रवाई करेगा।”
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सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा है कि राज्य सरकारों ने पराली जलाने वालों के खिलाफ करवाई क्यों नहीं की। कोर्ट ने कहा, “हमें बताया जा रहा है कि खरीफ की फसलों को देर से बोने के चलते, बाद में रबी की फसल लगाने के लिए समय नहीं मिलता। इसलिए, किसान फसल के अवशेष जलाते हैं।
दूसरों का जीवन खतरे में डालने वालों से कोई सहानुभूति नहीं
उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि हम यह कहना चाहते हैं कि जिन लोगों को दूसरों का जीवन खतरे में डालने में संकोच नहीं होता, हमें उनसे कोई सहानुभूति नहीं है। उनके ऊपर सख्त कार्रवाई की जाए। इस काम में ग्राम प्रधानों को भी भागीदार बनाया जाए। अगर वह अपने गांव में ऐसी घटना रोकने में असफल रहते हैं, तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। ग्राम प्रधान, स्थानीय अधिकारी और पुलिस में से जो भी पराली जलाने पर रोक नहीं लगा पाएगा, उसे नौकरी से निकाल दिया जाए।
कोर्ट ने ईपीसीए की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश फिलहाल रोकने, दिल्ली एनसीआर में हर तरह का निर्माण कार्य रोकने और डीजल जनरेटर का इस्तेमाल फिलहाल बंद करने का भी आदेश दिया है।
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वहीं धूल पर नियंत्रण के लिए बड़े पैमाने पर स्प्रिंकलर के इस्तेमाल का भी आदेश कोर्ट ने दिया। आज कोर्ट ने दिल्ली सरकार की और ऑड इवन पॉलिसी पर भी सवाल उठाए। दो जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “हमें यह बताया गया है कि थ्री व्हीलर भी बहुत ज्यादा प्रदूषण करते हैं। लोगों को घर से कार निकालने से तो रोका जा रहा है, लेकिन वह इसके बदले टैक्सी, थ्री व्हीलर या टू व्हीलर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे प्रदूषण कैसे रुकेगा? दिल्ली सरकार के पास क्या आंकड़े हैं? उसकी क्या नीति है? जरूरत इस बात की है कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए। सिर्फ कुछ कारों को घर से निकालने से रोक देना हल नहीं हो सकता। शुक्रवार तक दिल्ली सरकार हमें इस बारे में अपनी नीति बताए।”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की, “इस तरह की स्थिति एक दिन क्या एक घंटे के लिए भी स्वीकार नहीं की जा सकती। दिल्ली में रहने वाले करोड़ों लोगों को यहां से बाहर तो नहीं भेजा जा सकता। दुनिया के किसी भी देश में इस तरह की स्थिति बर्दाश्त नहीं की जाती। आखिर भारत में ही ऐसा क्यों हो रहा है?” वहीं अब इस मामले में अगली सुनवाई छह नवंबर को होगी।