आरयू वेब टीम। उत्तर प्रदेश में तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस के खतरे और इससे होने वाली मौतों पर बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने रोडमैप पेश कर संक्रमण रोकने के कदम उठाने का आश्वासन तो दिया, लेकिन जिला प्रशासन बिना जरूरी काम के घूमने वालों, चाय-पान की दुकान पर भीड़ लगाने वालों पर नियंत्रण करने में नाकाम रहा। पुलिस ने बिना मास्क लगाए निकलने वालों व सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन न करने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया व चालान काटा, फिर भी लोग जीवन की परवाह नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि ब्रेड बटर और जीवन में चुनना हो तो जीवन ज्यादा जरूरी है। सरकार को संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि हमारी राय में लॉकडाउन से कम कोई उपाय संक्रमण रोकने में कारगर साबित नहीं होगा। परिणाम के लिए हमें चयनित तरीके से सबकुछ बंद करना होगा, ताकि बेवजह बाहर निकलने वाले लोगों को उनके घरों के भीतर रहने के लिए विवश किया जा सके।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने क्वारंटीन सेंटरों व अस्पतालों की हालत सुधारने की जनहित याचिका पर की है। कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा बल की कमी के कारण हर गली में पुलिस पेट्रोलिंग नहीं की जा सकती। बेहतर है कि लोग स्वयं ही घरों में रहें। जरूरी काम होने पर ही बाहर निकलें।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में जनहित में कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। कानून लोगों के लिए बना है और यदि लोगों को उनके घरों में कैद करके संक्रमण रोका जा सकता है तो ऐसा करें। क्योंकि यह न सिर्फ लोगों की जान बचाएगा बल्कि सरकारी संसाधनों का भी बेहतर उपयोग हो सकेगा।
पखवाड़े भर के लॉक डाउन से लोग भूखे नहीं मरने लगेंगे
कोर्ट ने कहा कि हम नहीं समझते कि पखवाड़े भर के लॉक डाउन से अर्थव्यवस्था पर ऐसा कुछ असर पड़ेगा कि लोग भूखों मरने लगेंगे। हमें रोटी और जीवन में संतुलन बनाना होगा। ऐसे में लाक डाउन ही एकमात्र प्रभावी उपाय दिखाई देता है।
प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि लॉक डाउन लागू करना कानून के तहत दिए गए अनलॉक के आदेश के विपरीत होगा। सरकार के स्तर से फिर से लॉक डाउन की संभावना से इंकार किया जा चुका है।
एक्शन प्लान लागू करने में नाकाम अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई
कोर्ट ने मुख्य सचिव को रोड मैप व कार्रवाई रिपोर्ट के साथ 28 अगस्त को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही मुख्य सचिव से चार सवाल पूछें हैं।
सवाल एक- अर्थव्यवस्था फिर से खोलने के बाद क्या सरकार के पास कोई कार्ययोजना है?
सवाल दो- यदि कार्ययोजना है तो क्या कभी भी इसे लागू किया गया?
सवाल तीन- तमाम जिलों में समय-समय पर जो आदेश जारी किए जा रहे हैं, उनसे स्पष्ट है कि कोई केंद्रीय योजना लागू नहीं की गई है। जिलों के प्रशासनिक अधिकारी अपने स्तर और समझ से आदेश जारी कर रहे हैं। मुख्य सचिव बताएं कि क्या पूरे राज्य के लिए कोई योजना है और क्या इसके लिए जिम्मेदार केंद्रीय प्रशासन के अधिकारियों ने कोई एक्शन लिया है?
सवाल चार – मुख्य सचिव बताएं, क्या योजनाएं लागू न करने वाले जिलों के अधिकारियों पर केंद्रीय प्राधिकारियों ने कोई कार्रवाई की है?
वहीं नगर निगम के अधिवक्ता एसडी कौटिल्य व सत्यब्रत सहाय ने बताया कि डॉ. विमल कांत को नगर स्वास्थ्य अधिकारी नियुक्त किया गया है। कोर्ट ने उन्हें सफाई, सेनेटाइजेशन व फॉगिंग व्यवस्था सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रयागराज में नगर निगम की अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर चंदन शर्मा को दस दिन का और समय दिया है। उनके सहयोग के लिए शुभम द्विवेदी को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया है। इससे पहले नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर राम कौशिक ने अपना नाम वापस ले लिया।
खराब क्वालिटी के मास्क की बिक्री पर जानकारी मांगी
इसके अलावा कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से खराब क्वालिटी के मास्क की बिक्री पर जानकारी मांगी है। एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह ने कोरोना आईसीयू वार्ड में डॉक्टर व स्टाफ की तैनाती की गाइडलाइन पेश की। कोर्ट ने प्रदेश के सात जिलों लखनऊ, कानपुर नगर, प्रयागराज, वाराणसी, बरेली, गोरखपुर व झांसी की स्थिति का जायजा लिया। बताते चलें इन जिलों में कोरोना काफी खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है।