आरयू ब्यूरो, लखनऊ। “लोकतंत्र का आधार हमारी विधायिका है, एक सशक्त और समर्थ विधायिका लोकतंत्र की जड़ों को शक्तिशाली बनाती है। उत्तर प्रदेश का विधान मंडल देश का सबसे बड़ा विधानमंडल है। ये बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को लखनऊ में विधान परिषद सदस्यों के विदाई समारोह में कही।
साथ ही कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि जनवरी 1887 में प्रदेश में विधान परिषद के गठन की कार्यवाही प्रारंभ हुई तो उस समय कोई स्थायी भवन नहीं था। बैठकें अलग-अलग क्षेत्रों में हुआ करती थी। कभी प्रयागराज तो कभी बरेली में। कभी आगरा कभी लखनऊ में कभी कहीं, लेकिन जब गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत विधान परिषद के गठन की कार्यवाही को स्थायी रूप से आगे बढ़ाने का कार्य शुरु हुआ तो उस समय उत्तर प्रदेश के इस विधान भवन का निर्माण हुआ।
विधान भवन में पहली बैठक जिसमें आज विधानसभा चल रही, विधान परिषद की ही हुई थी। 1935 में ये भवन विधानसभा के लिए उपलब्ध करवाया गया और विधान परिषद जिसकी सदस्य संख्या भी कम थी और उनका कार्यकाल भी दो साल का बहुत छोटा सा होता था, तो उन्होंने अपनी समिति की अपनी पहली बैठक की और 1937 में वर्तमान विधानसभा का सभागार वो विधान परिषद को प्राप्त हुआ। ये सौभाग्य है कि इस विधान परिषद के सभागार का सौंदर्यीकरण का कार्य सभापति रमेश यादव के मार्गदर्शन में अभी हाल ही में संपन्न हुआ है…ये अपने आप मे एक भव्य रूप में सामने आ रहा है।
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इस दौरान योगी ने ओपी शर्मा को याद करते हुए कहा कि हमारे सदन के वरिष्ठतम सदस्य ओमप्रकाश शर्मा अब हमारे बीच नही हैं। विधायिका का उपयोग शिक्षा जगत के लिए कैसे किया जाए? इसे उन्होंने बखूबी किया है। आधी सदी यानी 48 वर्षों तक वो सदन के गौरव रहे।
इनका सामाप्त हुआ कार्यकाल
सभापति व सपा नेता रमेश यादव, आशु मलिक, रामजतन राजभर, साहब सिंह सैनी और वीरेंद्र सिंह के अलावा बसपा के प्रदीप कुमार जाटव और धर्मवीर सिंह अशोक का कार्यकाल 30 जनवरी को खत्म हो रहा है। नसीमुद्दीन की सदस्यता दल बदल कानून के तहत रद्द हो गई है।
इन्हें चुना गया फिर से विधान परिषद सदस्य
कार्यकाल समाप्त होने के बाद भाजपा से उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, दोबारा एमएलसी चुने गए हैं। इसके अलावा सपा के नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन बने हैं।