आरयू वेब टीम।
देश में अवैध रूप से रहने के आरोप में पकड़े गए सात रोहिंग्याओं को भारत सरकार गुरुवार को वापस उनके मूल देश म्यामांर भेज रही है। वहीं, केंद्र सरकार को सात रोहिंग्या लोगों को म्यांमार वापस भेजने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक नई याचिका दायर की गई जिस पर आज सुनवाई हुई। मामले में केंद्र सरकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि म्यांमार ने इन लोगों को अपना नागरिक मान लिया है और उसने इन्हें वापस लेने पर सहमति जताई है। पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद 2012 से ही ये लोग असम के सिलचर जिले के कचार सेंट्रल जेल में बंद हैं।
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केन्द्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि गुरुवार को मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर सात रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार के अधिकारियों को सौंपा जाएगा। केंद्र सरकार ने पिछले साल रोहिंग्या मुसलमानों को देश में नहीं रहने देने की अपनी नीति पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर स्पष्टीकरण दिया था, जिसके पांच मुख्य कारण बताए गए थे।
रोहिंग्या को देश में न रखने की केंद्र ने बताई ये वजह-
जिसमें केंद्र का कहना है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का मौलिक अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है, केंद्र ने सुप्रीट कोर्ट को जवाब दिया कि रोहिंग्या मुसलमानों का देश में रहना गैर-कानूनी है, रोहिंग्या मुसलमान गैर कानूनी गतिविधियों में भी शामिल हैं, जैसे अपने दूसरे साथियों के लिए फर्जी पेन कार्ड और वोटर आइडी कार्ड उपलब्ध कराना। इसके अलावा कुछ रोहिंग्या मानव तस्करी में भी शामिल हैं। देश में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। ये काफी बड़ी संख्या है। इस वजह से सुरक्षा से जुड़ी परेशानियां भी आ सकती हैं।
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इतना ही नहीं देश की सुरक्षा की बात कहते हुए केंद्र ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान आतंकवाद में शामिल हैं। इनके पाकिस्तान और आतंकी संगठन आइएस से भी संपर्क है जो कि हमारे देश के लिए खतरा है। इतना ही नहीं देश में जो बौद्ध लोग रह रहे हैं, उनके साथ भी हिंसा होने की आशंका है। इसलिए ये यहां नहीं रह सकते।
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