आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस

आपातकाल

आरयू वेब टीम। देश की सबसे बड़ी अदालत ने 1975 में आपातकाल को “पूर्ण असंवैधानिक” घोषित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया है। दरअसल याचिकाकर्ता ने इमरजेंसी के दौरान अपने पति और परिवार पर हुए अत्याचार का हवाला देते हुए मुआवजे समेत ये मांग की है। इस संबंध में कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमें देखना होगा कि इतने सालों के बाद इमरजेंसी को असंवैधानिक घोषित करना व्यवहारिक होगा या नहीं।”

जस्टिस संजय किशन कौल, दिनेश माहेश्वरी और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने आपातकाल के लागू होने के 45 साल बाद दाखिल इस याचिका पर हैरानी जताई। उन्होंने शुरू में यह कहा कि इतना समय बीतने के बाद मामले पर सुनवाई व्यवहारिक नहीं लगती है। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलीलें रखते हुए कहा, “बात मुआवजे की नहीं है। 19 महीने तक देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। यह जरूरी है कि कोर्ट इस पर विचार करें और आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करें। कोर्ट ऐसा कुछ करे, जिससे भविष्य में कोई भी सरकार शक्तियों का दुरुपयोग करके नागरिकों का दमन न कर सके।”

साल्वे की जिरह के बाद तीनों जजों ने काफी देर तक आपस में विचार विमर्श किया। आखिरकार, बेंच के अध्यक्ष जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, “मुआवजा समेत दूसरी मांगों पर विचार करना सही नहीं लगता है, लेकिन हम याचिका की प्रार्थना संख्या एक पर नोटिस जारी कर रहे हैं, हालांकि, हमें यह भी देखना होगा कि इतने सालों के बाद आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने पर विचार करना व्यवहारिक और जरूरी है या नहीं।”कोर्ट ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए साल्वे से कहा कि वह याचिका में संशोधन करें। संशोधित याचिका में सिर्फ उसी प्रार्थना को रखें जिस पर नोटिस जारी किया जा रहा है। इसके लिए कोर्ट ने उन्हें 18 दिसंबर तक का समय दिया है।

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गौरतलब है कि 94 साल की वीरा सरीन की तरफ से दाखिल याचिका में यह कहा गया है कि उनके पति की दिल्ली में ज्वेलरी और कीमती रत्नों की दो दुकानें थीं। इमरजेंसी के दौरान अचानक उन दुकानों पर छापा मारा गया और पति को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें स्मगलिंग से जुड़ी धाराओं में फंसाने की धमकी दी गई। यहां तक कि उन्‍हें देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया गया। दुकान से जो कीमती चीजें छापे के दौरान उठाई गईं थीं, उन्हें कभी भी वापस नहीं किया गया। सरकारी लोगों ने उन्हें हड़प लिया।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकारी कार्रवाई से सदमे में आए उनके पति की कुछ समय के बाद मौत हो गई, लेकिन उन्हें पति के उपर दर्ज किए गए मुकदमे का परिणाम 35 साल तक झेलना पड़ा। महिला ने अपने परिवार को 25 करोड़ रुपए का मुआवजा देने और आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कोर्ट में रखी।

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