सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, राज्य की मर्जी के बिना CBI का अधिकार क्षेत्र नहीं बढ़ा सकती केंद्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट

आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआइ) बिना राज्य सरकार की इजाजत के किसी मामले की जांच नहीं कर सकती। साथ ही केंद्र सरकार राज्य की अनुमति के बिना सीबीआइ का अधिकार क्षेत्र नहीं बढ़ा सकता है। यह अहम बात सुप्रीम कोर्ट ने यूपी से जुड़े एक भ्रष्टाचार के मामले की सुनवाई करते हुए कही है। गौरतलब है कि आठ राज्यों द्वारा सामान्य सहमति वापस लिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये संवैधानिक प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप है।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत वर्णित शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को किसी भी मामले की जांच से पहले संबंधित राज्य सरकार से सहमति जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीएसपीई अधिनियम की धारा-5 केंद्र सरकार को केंद्र शासित प्रदेशों से परे सीबीआइ की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के काबिल बनाती है, लेकिन जब तक कि डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत राज्य सरकार जब तक सहमति नहीं देता है, तब तक यह स्वीकार्य नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने ये फैसला उत्तर प्रदेश में फर्टिको मार्केटिंग एंड इनवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य के खिलाफ सीबीआइ द्वारा दर्ज मामले में सुनाया है। अभियुक्त द्वारा इस केस में दावा किया गया था कि धारा-6 के तहत राज्य सरकार की सहमति के बगैर ही सीबीआइ के पास निहित प्रावधानों के मद्देनजर जांच कराने की कोई शक्ति नहीं दी गई है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एफआइआर दर्ज करने से पहले सहमति प्राप्त करने में विफलता पूरी जांच को समाप्त कर देगी। वहीं राज्य का तर्क है कि डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत पूर्व सहमति अनिवार्य नहीं है बल्कि यह सिर्फ निर्देशिका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साफ किया कि उत्तर प्रदेश राज्य ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 और अन्य अपराधों की जांच के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में सीबीआइ की शक्तियों के विस्तार और अधिकार क्षेत्र के लिए सामान्य सहमति प्रदान की है।

हालांकि, यह एक राइडर के साथ है, कि राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना, राज्य सरकार के नियंत्रण में, लोक सेवकों से संबंधित किसी भी मामले में ऐसी कोई भी जांच नहीं की जाएगी। लोक सेवकों की जांच के लिए अधिकारियों को डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की अधिसूचना द्वारा सहमति दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संज्ञान और ट्रायल को अलग नहीं किया जा सकता, जब तक कि जांच में अवैधता को न्याय की असफलता के बारे में नहीं दिखाया जाता। न्याय की विफलता के सवाल पर असर डाल सकती है, लेकिन सीबीआई जांच की अमान्यता का अदालत की क्षमता से कोई संबंध नहीं है।

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