आरयू वेब टीम। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ शुक्रवार से संसद में बजट सत्र शुरू हुआ। बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से हुई। राष्ट्रपति ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा को देश को कमजोर करने का प्रयास करार दिया। इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम महात्मा गांधी का सपना था और इस कानून को बनाकर राष्ट्रपिता के सपने को साकार करने का काम किया गया है। उनके इस बयान को लेकर संसद में विपक्षी नेताओं ने हंगामा किया और जमकर नारेबाजी भी की।
राष्ट्रगान के साथ शुरू हुए अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि यह दशक भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दशक में हमारी स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हुए। मेरी सरकार के प्रयास से इस सदी को भारत की सदी बनाने की मजबूत नींव रखी जा चुकी है। राष्ट्रपति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि पर फैसले के बाद जनता जिस तरह से परिपक्वता का परिचय दिया वह प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि विरोध के नाम पर हिंसा देश को कमजोर करती है।
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उन्होंने कहा कि इस लोकसभा के पहले सत्र में कार्य निष्पादन पिछले वर्षों में एक रेकॉर्ड रहा है। महिलाओं को न्याय देने वाला तीन तलाक कानून, अनियमितत जमा योजना प्रतिबंध कानून, चिटफंड संशोधन कानून, यौन अपराधों की सजा सख्त करने वाला कानून जैसे ऐतिहासिक कानून बनाए गए हैं। अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति ने ये भी कहा कि पूज्य बापू जी ने स्वच्छता को ईश्वर से भी ऊपर बताया था। हमारा दायित्व है कि गांव और शहरों को और भी साफ सुथरा बनाएं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम जन्मभूमि पर फैसले के बाद देशवासियों द्वारा जिस तरह परिपक्वता से व्यवहार किया गया, वह भी प्रशंसनीय है। मेरी सरकार का स्पष्ट मत है कि पारस्परिक चर्चा-परिचर्चा तथा वाद-विवाद लोकतंत्र को और सशक्त बनाते हैं। वहीं विरोध के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा, समाज और देश को कमजोर करती है। सरकार द्वारा पिछले पांच वर्षों में जमीनी स्तर पर किए गए सुधारों का ही परिणाम है कि अनेक क्षेत्रों में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में अभूतपूर्व सुधार आया है। मेरी सरकार, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मंत्र पर चलते हुए, पूरी निष्ठा और ईमानदारी से काम कर रही है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मेरी सरकार की योजनाओं ने हर धर्म के गरीबों को सुविधाएं पहुंचाई हैं। क्या जम्मू कश्मीर के लोग उन मूलभूत अधिकारों के अधिकारी नहीं हैं जो पूरे देश को दिए जाते हैं। हमने करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों का सपना साकार किया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को बाकी देशवासियों की तरह अधिकार मिले हैं।