आरयू ब्यूरो, लखनऊ। बेरोजागारी की समस्या को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीएम योगी पर हमला बोला है। अखिलेश ने शनिवार को कहा है कि उत्तर प्रदेश में युवा बेरोजगारी की समस्या से परेशान चल रहा है, जबकि अपनी दिव्यशक्ति से हकीकत को फसाना बना देने वाले यूपी के सीएम रोजगार के झूठे आंकड़ों से लोगों को भ्रमित कर रहें हैं।
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने आज पत्रकारों से कहा है कि असल में उत्तर प्रदेश में मनरेगा, माटी कला सहित जिन-जिन योजनाओं से रोजगार के अवसर सृजित करने की लंबी-चौड़ी डींगे हांकी जा रही हैं वे सब स्वयं संकट ग्रस्त हैं। इनसे संबंधित लोग दो जून रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। खुद सरकारी वोकेशनल करियर सर्विस पोर्टल बताता है कि सितंबर के मुकाबले अक्टूबर 2020 में ही रोजगार में 60 प्रतिशत गिरावट आई है।
सरकारी तंत्र ने फीकी कर दी दीवाली
योगी सरकार पर हमला जारी रखते हुए अखिलेश ने कहा कि भाजपा राज में मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं मिल रहा। बदायूं में भुगतान वेबसाइट में खराबी आने के कारण उनके खातों में रुपए ट्रांसफर नहीं हुए। मनरेगा में काम कर पैसे मिलते तो घर का काम चलता पर सरकारी तंत्र ने उनकी दीवाली ही फीकी कर दी हैं इनमें प्रवासी मजदूरों की हालत सबसे ज्यादा दयनीय है।
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सरकार विज्ञापन पर तो खूब खर्च करती है, लेकिन…
पूर्व सीएम ने आगे कहा कि जिला उद्योग केंद्रों में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना अंतर्गत माटी कला के प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को टूल किट न दिए जाने से वे अब तक कोई काम नहीं कर पा रहे हैं। कन्नौज में कुम्हारों के लिए सरकारी योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह गई है। कुम्हारी कला प्रोत्साहन में जिन कुम्हारों को बिजली से चलने वाला चाक दिया गया है उसके बढ़ते बिल के मुकाबले उनके उत्पाद की बिक्री नहीं होती है। वे कर्जदार बनते जा रहे हैं, उन्हें अब परंपरागत तरीका ही अच्छा लगने लगा है। माटी कला में लगे लोगों के हित में तीन योजनाएं राज्य सरकार ने घोषित की। जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया वे अब पछता रहे हैं। बहुतों ने यह काम छोड़ने का मन बना लिया है। भाजपा राज में शासन व प्रशासन की कागजी कार्यवाहियों का यही नतीजा है कि सरकार विज्ञापन पर तो खूब खर्च करती है, लेकिन अपनी योजनाओं को फाइलों में ही समेट लेती है।
कर्मचारियों की लॉकडाउन में हो गई छंटनी
साथ ही अखिलेश ने यह भी आज सत्ताधारी दल पर आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार में यूपी में नई नौकरियां नहीं दिखीं, पुरानी फैक्ट्रियां भी बंद हो गईं कर्मचारियों की लॉकडाउन में ही छंटनी हो गई थी। आज भी तमाम लोग काम पाने के लिए भटक रहें। चौराहों पर श्रमिकों की सुबह लगने वाली भीड़ रोजगार के सरकारी दावों की पोल खोलती है। भाजपा सरकार समाज के सभी वर्गों के हितों को चोट पहुंचा कर उसको रोजी-रोटी के लिए तरसा रही है। साल 2022 में भाजपा को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।