आरयू ब्यूरो, लखनऊ। हेट स्पीच मामले में सजा होने के बाद सपा के कद्दावर नेता आजम खान की विधानसभा की सदस्यता रद होने के बाद राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी ने विधानसभा अध्यख सतीश महाना की कार्रवाई पर सवाल उठाएं हैं। जयंत ने पत्र लिखते हुए सतीश महाना से पूछा है कि क्या सत्ता व विपक्ष के नेताओं के लिए कानून अलग-अलग हो सकता है।
जयंत चौधरी ने खतौली (मुजफ्फरनगर) के भाजपा विधायक विक्रम सैनी के विरुद्ध सजा के प्रकरण को संज्ञान में लेने की भी मांग उठाई है। रालोद चीफ ने कहा है कि आजम खान की सदस्यता समाप्त करने में इतनी सक्रियता दिखाई गई पर विक्रम सैनी की सजा पर संज्ञान क्यों नहीं लिया गया।
अपने पत्र में जयंत ने कहा है कि वर्ष 2013 में हुये मुजफ्फरनगर दंगों के लिए स्पेशल एमपी, एमएलए कोर्ट द्वारा 11 अक्तूबर 2022 को जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत विधायक विक्रम सैनी को दो साल की सजा सुनाई थी। इस प्रकरण को भी संज्ञान में लिया जाए।
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अजाम खान पर हुई कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाते हुए जयंत चौधरी ने कहा कि स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में हेट स्पीच के मामले में आपके (विस अध्यक्ष) कार्यालय द्वारा त्वरित फैसला लेते हुये समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी गयी है। जन प्रतिनिधि कानून लागू करने की आपकी सक्रियता की यद्यपि प्रशंसा की जानी चाहिए किंतु जब पूर्व में गठित ऐसे ही मामले में आप निष्क्रिय नजर आते हैं। ऐसे में आप जैसे त्वरित न्याय करने वाले की मंशा पर सवाल खडा होता है। सवाल है कि क्या कानून की व्याख्या व्यक्ति- व्यक्ति के मामले में अलग अलग रूप से की जा सकती है?
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जयंत ने यह भी कहा कि विक्रम सैनी को सजा सुनाने के मामले में कोई पहल नहीं की गई। सवाल यह है कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग अलग तरीके से की जा सकती है। यह सवाल तब तक अस्तित्व में रहेगा जब तक आप भाजपा विधायक विक्रम सैनी के मामले में ऐसी ही पहल नहीं करते।