आरयू वेब टीम।
भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुड़े होने के आरोपों में नजरबंद पांचों मानवधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने नजरबंद कार्यकर्ताओं की हिरासत चार हफ्ते और बढ़ा दी है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने फैसला दिया कि हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वरनन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा, छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहने वाले गौतम नवलखा को जमानत नहीं दी जाएगी और अगले चार हफ्ते तक उन्हें घर में नजर बंद रखा जाएगा। साथ ही, उच्चतम न्यायालय ने कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में दखल देने से भी कोर्ट ने इनकार कर दिया। इतना ही नहीं एसआइटी गठित करने की मांग भी अस्वीकार करते हुए कोर्ट ने पुणे पुलिस से आगे की जांच जारी रखने को कहा है।
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वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर के बहुमत के फैसले में कहा गया कि इस मामले में गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं हुई है, क्योंकि असहमति थी। मामले की एसआइटी जांच नहीं कराई जाएगी। पांचों गिरफ्तार लोगों की हाउस अरेस्ट चार हफ्ते और जारी रहेगा, ताकि वे कानूनी मदद ले सकें। कोर्ट ने यह भी कहा है कि भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए वामपंथी विचारक चाहें तो राहत के लिए ट्रायल कोर्ट जा सकते हैं।
बता दें कि मशहूर तेलुगु कवि वरवरा राव, को 28 अगस्त को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था, जबकि गोंजाल्विज और फरेरा को मुंबई से पकड़ा गया था। ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को हरियाणा के फरीदाबाद और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। इन सभी को कोरेगांव-भीमा गांव में यल्गार परिषद के भड़काऊ भाषणों के बाद हुई हिंसा के संबंध में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर को इस मामले में कड़ा संज्ञान लेते हुए इन पांचों गिरफ्तार लोगों को रिहा करके कुछ दिनों के लिए नजरबंद करने का आदेश दिया था। कोर्ट गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रही है।
याचिका रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से दाखिल की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच और पांचों को जमानत की मांग की गई है। 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था और महाराष्ट्र पुलिस की केस डायरी भी ले ली थी।
इससे पहले 20 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले की जांच कर रही महाराष्ट्र पुलिस को पीठ ने केस की डायरी पेश करने के लिए कहा था। पांचों कार्यकर्ताओं 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं।