CAA मामले में UP सरकार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, कानून से संबंधित जमा कराएं हलफनामा

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आरयू वेब टीम। यूपी में सीएए विरोधी प्रदर्शनकरियों से तोड़फोड़ के नुकसान की वसूली को अवैध बताने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 23 जुलाई के लिए टाल दी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि बिना किसी कानूनी आधार के प्रशासन ने लोगों को नोटिस भेजे थे। जवाब में यूपी सरकार ने शुक्रवार को Newकहा कि इस बारे में कानून बनाया जा चुका है। इस पर कोर्ट ने जानकारी को लिखित हलफनामे के रूप में जमा करवाने का आदेश दिया।

पिछले साल हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ करने वालों से वसूली को सही कहा था, लेकिन राज्य सरकार से लोगों को भेजे गए वसूली नोटिस के पीछे के कानूनी आधार पर पक्ष रखने को कहा था। आज करीब डेढ़ साल बाद यह मामला लगा। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच को याचिकाकर्ता की तरफ से जानकारी दी गई कि उनकी मुख्य वकील नीलोफर खान व्यक्तिगत कारणों से पेश होने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए सुनवाई टाल दी जाए।

इस पर जजों ने जानना चाहा कि यूपी सरकार के लिए कौन पेश हुआ है। राज्य की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने बेंच को बताया कि इस मामले पर जरूरी कानून बनाया जा चुका है। कानून को नोटिफाई कर दिया गया है। उसके आधार पर क्लेम ट्रिब्यूनल भी बनाए जा चुके हैं। बेंच ने उनसे कहा कि वह मौखिक तौर पर रखी गई इस जानकारी को लिखित हलफनामे के रूप में जमा करवाएं। सुनवाई 23 जुलाई को की जाएगी।

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याचिकाकर्ता की तरफ से सुनवाई की तारीख एक महीना बाद रखने का आग्रह किया गया। इस पर जजों ने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने केस की पूरी फाइल पढ़ी है। अगर वकील नीलोफर उपलब्ध नहीं हो पाएंगी, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राज्य का हलफनामा आने के बाद अगली सुनवाई में मामला बंद कर दिया जाएगा।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल जनवरी में परवेज आरिफ टीटू नाम के याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि यूपी में अल्पसंख्यकों को परेशान करने के मकसद से नुकसान की भरपाई के नोटिस भेजे जा रहे हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मुताबिक, इस तरह के मामलों में नुकसान के आकलन और भरपाई का आदेश हाई कोर्ट या किसी न्यायिक संस्था की तरफ से आना चाहिए था, लेकिन यूपी में जिला प्रशासन ने लोगों को नोटिस भेजे हैं। यह नोटिस इसलिए भी अवैध हैं, क्योंकि राज्य में इसे लेकर कोई कानून नहीं है।’

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