आरयू ब्यूरो, लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अयोध्या में बाबरी विध्वंस मामले में सत्र अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सीबीआइ ने सोमवार को आपत्ति दाखिल की। कोर्ट ने अगली सुनवाई 26 सितंबर को तय की है।
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की खंडपीठ ने यह आदेश अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक अहमद की अपील पर दिया। इससे पहले राज्य सरकार व सीबीआइ के वकीलों ने अपील पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह केस के पीड़ित नहीं हैं। ऐसे में बरी अभियुक्तों व पक्षकारों के खिलाफ अपील दायर करने का इन्हें अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने सीबीआई व राज्य सरकार के अधिवक्ताओं को अपील पर आपत्ति दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया था। इस मामले में बरी लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती समेत 32 लोगों को दोषी करार देने की गुजारिश भी की गई है।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने पहले पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी, जिसे न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने गत 18 जुलाई को विचारणीय नहीं मानते हुए उसे आपराधिक अपील में परिवर्तित करने का आदेश दिया था।
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सुनवाई के दौरान सीबीआइ के अधिवक्ता शिव पी शुक्ला एवं सरकारी वकील विमल कुमार श्रीवास्तव ने अदालत से कहा कि अपीलार्थी सीआरपीसी की धारा 372 के तहत पीड़ित की श्रेणी में नहीं आते, लिहाजा उनको विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। इस पर न्यायालय ने सीबीआई व सरकार को लिखित में आपत्ति पेश करने का समय दे दिया।
एक विशेष अदालत ने 30 सितम्बर 2020 को फैसला सुनाते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोकसभा सदस्य साक्षी महाराज, लल्लू सिंह व बृजभूषण शरण सिंह समेत सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया था।
कारसेवकों ने छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 30 सितंबर, 2020 को विशेष सीबीआई अदालत ने आपराधिक मुकदमे में फैसला सुनाया और सभी आरोपितों को बरी कर दिया था।