आरयू वेब टीम।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) में लंबे समय से चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा की याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया है। इस फैसले से जहां केंद्र सरकार को झटका लगा है वहीं जांच एजेंसी के निदेशक वर्मा को भी पूरी तरह से राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी के फैसले को पलटते हुए सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजने का फैसला निरस्त कर दिया है। अब आलोक वर्मा सीबीआइ ऑफिस जा सकेंगे।
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि आलोक वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमिटी से सहमति लेनी चाहिए थी। जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है। इस तरह से वर्मा अब सीबीआई प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे। हालांकि वह बड़े पॉलिसी वाले फैसले नहीं ले सकेंगे। चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के कारण उनके लिखे फैसले को जस्टिस केएन जोसेफ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने पढ़ा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने छह दिसंबर को मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा के अलावा एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से अर्जी दाखिल कर मामले की एसआईटी जांच की मांग की थी। साथ ही सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। केंद्र सरकार ने वर्मा और अस्थाना के बीच विवाद के बाद दोनों को हटाते हुए संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को अंतरिम मुखिया बना दिया था।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने पिछले साल छह दिसंबर को आलोक वर्मा की याचिका पर वर्मा, केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग और अन्य की दलीलों पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जाएगा।
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मालूम हो कि अस्थाना मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच कर रहे थे। जांच के दौरान हैदराबाद का सतीश बाबू सना भी घेरे में आया। एजेंसी 50 लाख रुपए के ट्रांजैक्शन के मामले में उसके खिलाफ जांच कर रही थी। सना ने सीबीआइ चीफ को भेजी शिकायत में कहा था कि अस्थाना ने इस मामले में उसे क्लीन चिट देने के लिए पांच करोड़ रुपए मांगे थे। हालांकि, 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को पत्र लिखकर डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था।
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