आरयू वेब टीम। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस सप्ताह की शुरुआत में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। शनिवार को सीजेआइ ने संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि “पहली चुनौती जिसका हम सामना करते हैं, वह अपेक्षाओं की है।” साथ ही सोशल मीडिया भी मौजूदा समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
मुख्य न्यायाधीश ने जोर देकर कहा, “मामले की सुनवाई के दौरान एक न्यायाधीश द्वारा कही गई हर बात अंतिम राय नहीं है। जब किसी मामले की सुनवाई होती है तो एक स्वतंत्र संवाद होता है। वास्तविक समय की रिपोर्टिंग में जज के फैसले ट्विटर या टेलीग्राम और इंस्टाग्राम पर डाल दिए जातो हैं और फिर आप मूल्यांकन करने लग जाते हैं। अगर जज चुप रहता है तो इसका निर्णय लेने पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा।”
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ई-कोर्ट (इलेक्ट्रॉनिक) सेवाएं अब न केवल महानगरों बल्कि गांवों तक भी पहुंचती हैं। उन्होंने कहा, “हमें अपने आप को नया रूप देने की जरूरत है, अपने आप को फिर से भरने और पुनर्विचार करने की जरूरत है कि हम अपनी उम्र की चुनौतियों के अनुकूल कैसे बनें। हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां इंटरनेट तक पहुंच मजबूत नहीं है। अदालती इमारतें वादियों के मन में खौफ पैदा करती हैं…यह औपनिवेशिक मानसिकता का डिजाइन था। प्रौद्योगिकी ने हमें उस मॉडल को बदलने की अनुमति दी जहां नागरिकों ने अदालतों तक पहुंच बनाई और अदालतों को वादकारियों तक पहुंचने की अनुमति दी।”
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आगे मुख्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालत में मामलों की लाइव-स्ट्रीमिंग के बारे में बोलते हुए रेखांकित किया, “तकनीक ने न्यायाधीशों को काम करने के पारंपरिक तरीकों पर फिर से विचार करने में मदद की है।” उन्होंने आगे कहा कि आप नागरिकों के प्रति जवाबदेही की भावना पैदा करते हैं।
हमें जिला न्यायपालिका की कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह नागरिकों के लिए पहला इंटरफेस है। नागरिक न्यायिक कामकाज के दिमाग को जानने के हकदार हैं। संवैधानिक लोकतंत्र में संस्थानों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक अपारदर्शी होना है।”