आरक्षण के मुद्दे पर जातिवादी रवैया त्यागने को तैयार नहीं लगती मोदी सरकार: मायावती

मायावती
फाइल फोटो।

आरयू ब्‍यूरो, 

लखनऊ। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एससी-एसटी मामले सुनाए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा सरकार पर बुधवार को अपने एक बयान में हमला बोला है। उन्‍होंने कहा एससी-एसटी वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा ही सही व संवैधानिक माना है।

मायावती ने कहा कि कम-से-कम अब सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्णय आ जाने के बाद केन्द्र व राज्य सरकारों को अपने पिछले तमाम निर्णयों की समीक्षा करनी चाहिए तथा एससी-एसटी वर्गों के सरकारी कर्मचारियों पर हुए अन्यायों को सुधारने के साथ ही उन्हें अभियान चलाकर प्रोन्नति में आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था का लाभ देना चाहिये।

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उन्‍होंने कहा कि लगभग पिछले चार वर्षों से यह मामला लोकसभा में लंबित पड़ा हुआ है, जो काफी दुखद है, क्योंकि इससे इन वर्गों के कर्मचारियों की अपूर्णीय क्षति हुई है। वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा कल के इस निर्णय पर कि केंद्र सरकार प्रोन्नति में आरक्षण दे सकती है। मायावती ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि पहले कांग्रेस व अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर भी अपना जातिवादी रवैया त्यागने को तैयार नहीं लगती है।

यही वजह है कि इस संबंध में संवैधानिक संशोधन विधेयक में लगभग सर्व सम्मति होने के बावजूद लोकसभा से इसे पारित नहीं कराया जा रहा है तथा यह मामला लोकपाल की नियुक्ति की तरह ही वर्षों से लंबित पड़ा हुआ है। मोदी व बीजेपी सरकारों पर कांग्रेस की तरह ही केवल सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा कि खासकर एससी-एसटी व ओबीसी वर्गो के कल्याण के लिए ठोस काम करने के मामले में इनकी सरकारों का रिकार्ड जीरो रहा है।

वोटों के लालच में लेतें है बाबा साहब का नाम

वहीं बसपा सुप्रीमो ने सरकारों की नीति व कार्यप्रणाली मुंह में राम बगल में छुरी के समान बताया है। हमला जारी रखते हुए बसपा मुखिया ने कहा कि ये लोग बाबा साहब का नाम तो वोटों के लालच में लेते हैं, परन्तु उनके करोड़ों अनुयाइयों को जातिवादी द्वेष, हिंसा व जुल्म-ज्यादती का शिकार बनाने में जरा भी नहीं हिचकते हैं।

अधिकारों को छीनने का हो रहा प्रयास

मायावती ने आगे कहा कि इतना ही नहीं बल्कि इनकी सरकारों में देशभर में दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों आदि के प्रति जातिवादी हिंसा व क्रूर जुल्म की घटनाएं काफी ज्यादा बढ़ी हैं। साथ ही इनके संवैधानिक अधिकारों को भी धीरे-धीरे करके छीनने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।

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