आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए दंगों और आगजनी मामले में अपील पर फैसला आने तक कांग्रेस के नेता हार्दिक पटेल की सजा पर रोक लगाते हुए कहा कि संबंधित उच्च न्यायालय को सजा पर रोक लगानी चाहिए थी। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की खंडपीठ ने यह भी कहा कि हार्दिक पटेल की सजा पर रोक लगाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय के लिए यह एक उपयुक्त मामला था इसलिए शीर्ष अदालत ने पटेल को राहत देने का फैसला किया।
न्यायालय ने निर्देश दिया। यह मामला राज्य भर में पाटीदार आंदोलन के बाद हार्दिक के खिलाफ अहमदाबाद डिपार्टमेंट ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) पुलिस स्टेशन द्वारा 2015 में दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है। जनवरी 2020 में उन्हें जमानत देते हुए, अहमदाबाद की एक ट्रायल कोर्ट ने एक शर्त लगाई थी, जिसमें उन्हें राज्य छोड़ने से पहले अदालत की अनुमति लेने का निर्देश दिया गया था।
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बाद में पटेल ने इस शर्त को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, एकल-न्यायाधीश पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी और जमानत की शर्त को बरकरार रखा था। इसके बाद हार्दिक ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत द्वारा लगाई गई शर्त “अत्यधिक कठिन और अनुपातहीन” है।