आरयू ब्यूरो, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के दौरान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर रहीं मंजिल सैनी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल 2017 में हुए श्रवण साहू हत्याकांड की जांच कर रही सीबीआइ ने मंजिल सैनी को काम में लापरवाही का दोषी माना है। सीबीआइ ने राज्य सरकार से सैनी के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की है।
श्रवण अपने पुत्र आयुष की हत्या के मामले की कचहरी में पैरवी कर रहे थे और गवाही दे रहा था। इससे आयुष के हत्यारे नाराज रहते थे और केस की पैरवी करने से मना करते थे। श्रवण की हत्या से 17 महीने पहले उनके बेटे आयुष साहू की 16 अक्तूबर 2015 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि ये हत्याएं लखनऊ के कुख्यात अकील अंसारी गैंग ने की। मंजिल सैनी के जमाने में पुलिसिया सरपरस्ती किस कदर अकील गैंग को थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हत्या से पहले अकील गैंग ने पुलिस से मिल श्रवण साहू को एक फर्जी पुलिस केस में भी फंसा दिया था।
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अकील गैंग लगातार श्रवण को धमका रहा था कि वह केस में गवाही न दे नही तो वह जान से हाथ धो बैठेगा। श्रवण साहू ने जान बचाने की गुहार उस वक्त के हर बड़े अधिकारी के पास लगायी, तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी से जाकर मिला, लेकिन फिर भी मंजिल सैनी ने श्रवण साहू को कोई सुरक्षा नहीं दी और न ही कुख्यात अकील अंसारी गैंग पर प्रभावशाली कार्यवाही की। वह भी तब जब श्रवण साहू की हत्या के कुछ दिन पहले अकील गैंग ने पुलिसकर्मियों से मिल श्रवण को फर्जी मामले में जेल भेजने की साजिश रची थी।
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अब करीब पांच साल बाद इस हत्याकांड की जांच कर रही सीबीआइ ने पूर्व एसएसपी मंजिल सैनी को दोषी पाया है और इनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की संस्तुति की है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या विभागीय कार्रवाई पर्याप्त है? क्यों मंजिल सैनी के खिलाफ लापरवाही बरतने के आरोप में एफआइआर नहीं दर्ज की जा रही?
मंजिल सैनी वर्ष 2005 बैच की आइपीएस अधिकारी हैं। वे 18 मई 2016 से 27 अप्रैल 2017 तक लखनऊ की एसएसपी रही थीं। योगी सरकार बनने के बाद उनको साइड लाइन कर दिया गया। उनको केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया। पहले वे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में तैनात रहीं और अब एनएसजी मुख्यालय में डीआईजी हैं।