आरयू वेब टीम। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) रविवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से अपना पहला नया रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल डेवलपमेंटल फ्लाइट-1 (एसएसएलवी-डी1) लॉन्च किया। यह अपने साथ ‘पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-02’ (ईओएस-02) ले गया है। इसके अलावा एसएसएलवी-डी1 अपने साथ छात्रों की ओर से बनाए गए सैटेलाइट ‘आजादीसैट’ को भी ले गया है।
इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने आज मीडिया को बताया कि एसएसएलवी-डी1 ने सभी चरणों में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन किया। मिशन के अंतिम चरण में डेटा मिलना बंद हो गया है। इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डेटा लिंक हासिल करने का प्रयास कर रहा है। हम जैसे ही लिंक स्थापित कर लेंगे, देश को सूचित करेंगे।
इसरो ने 500 किलोग्राम तक के सैटेलाइटों को पृथ्वी की निचली कक्षा में 500 किलोमीटर तक स्थापित करने का मिशन शुरू किया है। उसका मकसद तेजी से बढ़ते एसएसएलवी बाजार का बड़ा हिस्सा बनना है। इसरो ने रविवार को अपनी वेबसाइट पर कहा कि एसएसएलवी-डी1/ईओएस-02 मिशन: उलटी गिनती दो बजकर 26 मिनट पर शुरू हुई। एसएसएलवी का मकसद सैटेलाइट ईओएस-02 और आजादीसैट को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करना है।
चेन्नै से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसएचएआर) के पहले लॉन्च पैड से सुबह नौ बजकर 18 मिनट पर रॉकेट लॉन्च किया गया। लॉन्च के करीब 13 मिनट बाद रॉकेट के इन दोनों उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित किया गया। अपने भरोसेमंद ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के माध्यम से सफल अभियानों को अंजाम देने में एक खास जगह बनाने के बाद इसरो लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) से पहला प्रक्षेपण किया। इसका उपयोग पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए किया जाएगा।
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एसएसएलवी 34 मीटर लंबा है, जो पीएसएलवी से लगभग दस मीटर कम है और पीएसएलवी के 2.8 मीटर की तुलना में इसका व्यास दो मीटर है। इसरो ने इंफ्रा-रेड बैंड्स में एडवांस ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का निर्माण किया है। ईओएस-02 अंतरिक्षयान की लघु उपग्रह श्रृंखला का उपग्रह है।
वहीं ‘आजादीसैट’ में 75 अलग-अलग उपकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है। देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन उपकरणों के निर्माण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की ओर से मार्गदर्शन प्रदान किया गया था जो ‘स्पेस किड्स इंडिया’ की छात्र टीम की ओर से एंट्रीग्रटेड हैं। ‘स्पेस किड्ज इंडिया’ की ओर से विकसित जमीनी प्रणाली का उपयोग इस उपग्रह से डेटा प्राप्त करने के लिए किया जाएगा।