आरयू वेब टीम। केबल रूल्स 2021 में संशोधन और डिजिटल मीडिया आईटी रूल्स 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सोशल मीडिया और यूट्यूब पर चलने वाली फर्जी खबरों को लेकर नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया पर जजों के लिए भी बुरा-भला लिखा जाता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तबलीगी जमात के मामले को लेकर यह भी कहा कि मीडिया के एक वर्ग में दिखाई जाने वाली खबरों में सांप्रदायिकता का रंग दिया गया था, जिससे देश की छवि खराब होती है।
सीजेआइ ने कहा कि ऐसा लगता है कि वेब पोर्टल पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। वो जो चाहे चलाते हैं। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं है। वे हमें कभी जवाब नहीं देते। वो संस्थाओं के खिलाफ बहुत बुरा लिखते है। लोगों के लिए तो भूल जाओ, संस्थान और जजों के लिए भी कुछ भी मनमाना लिखते, कहते है। हमारा अनुभव यह रहा है कि वे केवल वीआईपी की आवाज सुनते हैं। ‘मैंने कभी फेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब द्वारा कार्यवाही होते नहीं देखी। वो जवाबदेह नहीं हैं वो कहते हैं कि ये हमारा अधिकार है।
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अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या इससे निपटने के लिए कोई तंत्र है? आपके पास इलेक्ट्रानिक मीडिया और अखबारों के लिए तो व्यवस्था है, लेकिन वेब पोर्टल के लिए कुछ करना होगा। कई हाई कोर्टस में इन दोनों कानूनों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। बेंच ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर हर चीज और विषय को सांप्रदायिक रंग क्यों दे दिया जाता है?
चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर सोशल और डिजिटल मीडिया पर निगरानी के लिए आयोग बनाने के वायदे का क्या हुआ? इस पर कितना काम आगे बढ़ा! एनबीए ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने इन नियमों को चुनौती दी है, क्योंकि ये नियम मीडिया को स्वायत्तता और नागरिकों के अधिकारों के बीच संतुलन नहीं करते। इसपर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमारे विशेषज्ञों ने इसी संतुलन को व्यवस्थित करने के लिए हर दृष्टिकोण से ये नियम मीडिया और नागरिकों को तीन स्तरीय सुविधा देते हैं।
सीजेआइ ने पूछा कि हम ये स्पष्टीकरण चाहते हैं कि प्रिंट प्रेस मीडिया के लिए नियमन और आयोग है, इलेक्ट्रानिक मीडिया स्वनियमन करते हैं, लेकिन बाकी के लिए क्या इंतजाम है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि टीवी चैनल्स के दो संगठन हैं, लेकिन ये आईटी नियम सभी पर एक साथ लागू हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं पर छह हफ्ते बाद एकसाथ सुनवाई होगी।