आरयू वेब टीम। अतीत में हमारे भारत पर कितने ही हमले हुए, सैकड़ों साल की गुलामी में ये देश जकड़ा गया। प्राकृतिक आपदाएं आईं, चुनौतियां आईं, कठिनाइयां आईं, लेकिन भगवान विट्ठल देव में हमारी आस्था, हमारी दिंडी वैसे ही अनवरत चलती रही। आज भी ये यात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी जन-यात्राओं के रूप में, पीपल मूवमेंट के रूप में देखी जाती है। ‘आषाढ़ एकादशी’ पर पंढरपुर यात्रा का विहंगम दृश्य कौन भूल सकता है। हजारों-लाखों श्रद्धालु, बस खिंचे चले आते हैं।‘ ये यात्राएं अलग-अलग पालखी मार्गों से चलती हैं, लेकिन सबका गंतव्य एक ही होता है।
उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को महाराष्ट्र के पंढरपुर में इंफ्रा मॉडर्नाइजेशन पर एक कार्यक्रम को संबोधित कर कही। इस दौरान मोदी ने कहा ‘आज जब मैं अपने वारकरी भाई-बहनों से बात कर रहा हूं, तो आपसे आशीर्वाद स्वरूप तीन चीजें मांगना चाहता हूं। आपका हमेशा मुझ पर इतना स्नेह रहा है, कि मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। दूसरा आशीर्वाद मुझे ये चाहिए कि इस पैदल मार्ग पर हर कुछ दूरी पर पीने के पानी की व्यवस्था भी की जाए, इन मार्गों पर अनेक प्याऊ बनाए जाएं। तीसरा आशीर्वाद जो मुझे चाहिए, वो पंढरपुर के लिए है। मैं भविष्य में पंढरपुर को भारत के सबसे स्वच्छ तीर्थ स्थलों में देखना चाहता हूं। ये काम भी जनभागीदारी से ही होगा, जब स्थानीय लोग स्वच्छता के आंदोलन का नेतृत्व अपनी कमान में लेंगे, तभी हम इस सपने को साकार कर पाएंगे।
ये भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक
पीएम ने आगे कहा कि आज श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का शिलान्यास हुआ है। श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग का निर्माण पांच चरणों में होगा और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का निर्माण तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। ये भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक है जो हमारी आस्था को बांधती नहीं, बल्कि मुक्त करती है, जो हमें सिखाती है कि मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं, पद्धतियां और विचार अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एक होता है। अंत में सभी पंथ ‘भागवत पंथ’ ही हैं।
…जब संसार की भी सृष्टि नहीं हुई थी
उन्होंने कहा, ‘पंढरपुर की सेवा मेरे लिए साक्षात् श्री नारायण हरि की सेवा है। ये वो भूमि है, जहां भक्तों के लिए भगवान आज भी प्रत्यक्ष विराजते हैं। ये वो भूमि है, जिसके बारे में संत नामदेव जी महाराज ने कहा है कि पंढरपुर तबसे है जब संसार की भी सृष्टि नहीं हुई थी। वारकरी आंदोलन की और एक विशेषता रही और वह है पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर वारी में चलने वाली हमारी बहनें, देश की स्त्री शक्ति, पंढरी की वारी, अवसरों की समानता का प्रतीक हैं। वारकरी आंदोलन का ध्येय वाक्य हैं, ‘भेदाभेद अमंगल।’