आरयू वेब टीम। मैसूर यूनिवर्सिटी, प्राचीन भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था और भविष्य के भारत की महत्वाकांक्षाओं का प्रमुख केंद्र है। इस यूनिवर्सिटी ने ‘राजर्षि’ नालवाडी कृष्णराज वडेयार और एम. विश्वेश्वरैया जी के विजन और संकल्पों को साकार किया है। ‘हमारे यहां शिक्षा और दीक्षा, युवा जीवन के दो अहम पड़ाव माने जाते हैं। ये हजारों वर्षों से हमारे यहां परंपरा रही है। जब हम दीक्षा की बात करते हैं, तो ये सिर्फ डिग्री प्राप्त करने का ही अवसर नहीं है। आज का ये दिन जीवन के अगले पड़ाव के लिए नए संकल्प लेने की प्रेरणा देता है।
उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को मैसूर विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को ऑनलाइन संबोधित करते हुए कही। पीएम ने आगे कहा कि अब आप एक फॉर्मल यूनिवर्सिटी कैंपस से निकलकर, रियल लाइफ यूनिवर्सिटी के विराट कैंपस में जा रहे हैं। ये एक ऐसा कैंपस होगा जहां डिग्री के साथ ही, आपकी योग्यता और काम आएगी। मोदी ने आगे कहा कि मुझे खुशी है कि मैसूर यूनिवर्सिटी ने नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है, तेजी दिखाई है।
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इतना ही नहीं नेशनल एजुकेशन पॉलिसी, प्री नर्सरी से लेकर पीएचडी तक देश के पूरे एजुकेशन सेटअप में फंडामेंटल चेंजिस लाने वाला एक बहुत बड़ा अभियान है। हमारे देश के सामर्थ्यवान युवाओं को और ज्यादा कॉम्पिटिटिव बनाने के लिए मल्टीडाइमेंशनल अप्रोच पर फोकस किया जा रहा।
साथ ही मोदी ने कहा, ‘आजादी के इतने वर्षों के बाद भी साल 2014 से पहले तक देश में 16 आइआइटी थीं। बीते छह साल में औसतन हर साल एक नई आइआइटी खोली गई है। इसमें से एक कर्नाटका के धारवाड़ में भी खुली है। 2014 तक भारत में नौ आइआइटी थीं। इसके बाद के पांच सालों में 16 आइआइटी बनाई गई हैं।
बीते पांच-छह साल में सात नए आइआइएम स्थापित किए गए हैं, जबकि उससे पहले देश में 13 आइआइएम ही थे। इसी तरह करीब छह दशक तक देश में सिर्फ सात एम्स देश में सेवाएं दे रहे थे। बीते पांच-छह सालों से उच्च शिक्षा में हो रहे प्रयास सिर्फ नए संस्थान खोलने तक ही सीमित नहीं है।’