आरयू वेब टीम। पटना हाई कोर्ट ने गुरुवार को नीतीश सरकार को बड़ा झटका दिया है। हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के एससी, एसटी और ओबीसी को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 65 प्रतिशत आरक्षण देने के कानून को रद्द कर दिया है। चीफ जस्टिस के.वी. चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया।
याचिकाकर्ताओं ने नौ नवंबर, 2023 को पारित इस कानून को चुनौती दी थी, जिस पर 11 मार्च, 2024 को फैसला सुरक्षित रखा गया था। दरअसल गौरव कुमार और अन्य ने इस कानून को चुनौती देते हुए कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15(6)(b) के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए दस प्रतिशत आरक्षण रद्द करना अन्यायपूर्ण है।
उन्होंने तर्क दिया कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद आरक्षण का निर्णय लिया गया, जबकि यह अनुपातिक आधार पर नहीं था। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा स्वाहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी.के. शाही ने बहस में कहा कि आरक्षण का ये निर्णय इसलिए लिया गया, क्योंकि इन वर्गों का सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था। शाही ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने आरक्षण का निर्णय जातिगत सर्वेक्षण के आधार पर लिया, ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि यह कानून इन वर्गों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए जरूरी था।
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बता दें कि हाईकोर्ट ने गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार का 65 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(6)(b) के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा स्वाहनी मामले में 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा निर्धारित की गई है, जिसे बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना असंवैधानिक है।