आरयू वेब टीम। देश की सबसे अदालत ने राजनीतिक अपराधीकरण पर गुरुवार को सख्त रूख अपनाया है। इस मामले में दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी राजनीतिक दलों से दागी उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट दिए जाने की वजह बताने का आदेश दिया है। जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस रविंद्र भट की बेंच ने इसके साथ ही आदेश दिया कि सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों का क्रिमिनल रिकॉर्ड वेबसाइट पर अपलोड करना होगा।
फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति पार्टियों को आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का कारण अपनी वेबसाइट, अखबार, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रचारित करने का आदेश दिया। पार्टियों को इन उम्मीदवारों की उपलब्धियों और उन पर चल रहे आपराधिक मामलों को भी प्रचारित करना होगा।
साथ ही, कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि अपनी वेबसाइट पर आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के चयन की वजह भी बताएं। कोर्ट ने दागी उम्मीदवारों के आपराधिक आंकड़ों की जानकारी चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया है।
चलेगा अवमानना का केस
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राजनीति पार्टियां उसके निर्देश को नहीं मानतीं तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलेगा। मामले में चुनाव आयोग के पास सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने का अधिकार होगा।
की गई थी ये मांग
याचिकाकर्त ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह राजनीतिक दलों पर दबाव डाले कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न दें। ऐसा होने पर आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे।
चुनाव आयोग की ओर से क्या कहा गया
वही, चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि आयोग ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए नामांकन संबंधी फार्म में जरूरी बदलाव किए हैं, लेकिन आयोग ने पाया है कि उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड का ब्योरा प्रकाशित करने के आदेश से राजनीति के अपराधीकरण रोकने में मदद नहीं मिल रही है।
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विकास सिंह ने कहा कि कोर्ट राजनीतिक दलों को आदेश दे कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को टिकट न दें। इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मामला है। राष्ट्रहित में जल्दी ही इस पर कुछ किए जाने की जरूरत है।
चुनाव आयोग को फ्रेमवर्क तैयार करने का दिया था निर्देश
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग को एक हफ्ते में फ्रेमवर्क तैयार करने का निर्देश दिया था। जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने आयोग से कहा था, ‘राजनीति में अपराध के वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए।’
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग से कहा कि वह साथ मिलकर विचार करें और सुझाव दें, जिससे राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद मिले।
कानून कहता है…
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-8 मामले में दोषी पाए जा चुके राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर सिर्फ मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है।
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किए जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।