आरयू वेब टीम।
रिजर्व बैंक और मोदी सरकार के बीच खींचतान जारी है, जहां मोदी सरकार 19 नवंबर को होने वाली आरबीआइ बोर्ड बैठक में अपना अहम एजेंडा सामने करते हुए बोर्ड में रिजर्व बैंक गवर्नर की भूमिका को कम करने का काम कर सकती है। खबर की माने तो केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक गवर्नर के बीच विवाद की अहम वजह केंद्रीय रिजर्व बैंक के पास मौजूद 9.6 ट्रिलियन (9.6 लाख करोड़) रुपये की रकम है।
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इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक के पास पड़ी इस रिजर्व मुद्रा का लगभग एक-तिहाई हिस्सा लेना चाहती है। मोदी सरकार का रुख है कि इतनी बड़ी मात्रा में रिजर्व मुद्रा रखना रिजर्व बैंक की पुरानी और संकुचित धारणा है और इसे बदलने की जरूरत है।
खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से चाहती है कि उसे इस रिजर्व मुद्रा से 3.6 ट्रिलियन रुपये दिए जाएं। केंद्र सरकार इस मुद्रा का संचार कर्ज और अन्य विकास कार्यों पर खर्च के जरिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहती है। साथ ही केंद्र सरकार यह भी कह रही है कि एक तरफ जहां सरकारी बैंक अपने डूबे कर्ज की रिकवरी कर रही है, रिजर्व मुद्रा की मदद से वह वापस मजबूती के साथ खड़ा हो सकता है।
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दरअसल, रिजर्व बैंक बोर्ड में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों की संख्या अधिक है, लिहाजा फैसला प्रस्ताव के आधार पर लिया जाएगा तो रिजर्व बैंक गवर्नर के सामने केंद्र सरकार का सभी फैसला मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
दूसरी ओर मोदी सरकार की इस मांग पर रिजर्व बैंक का मानना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। इस दलील के साथ केंद्रीय रिजर्व बैंक मोदी सरकार को अपने रिजर्व खजाने से पैसे देने के का विरोध कर रहा है। साथ ही इसके उलट रिजर्व बैंक का मानना है कि रिजर्व मुद्रा को खर्च करना उचित नहीं है। इस खर्च से कमाई में इजाफा नहीं होगा और यह खर्च महज सरकारी खर्च बनकर रह जाएगा। वहीं आरबीआइ के मुताबिक वित्तीय बाजार के लिए भी यह कदम उचित नहीं है, क्योंकि इससे बाजार का भरोसा कम होने का खतरा है।
यहां बताते चलें कि इससे पहले 2017-18 में रिजर्व बैंक ने 50,000 करोड़ रुपये की रकम अपने रिजर्व से केंद्र सरकार को दी थी। इसमें 10,000 करोड़ रुपये की अंतरिम राशि भी शामिल है। वहीं इससे पहले 2016-17 में उसने 30,659 करोड़ रुपये केंद्र सरकार को दी थी।