आरयू ब्यूरो, लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल पूरे होने पर आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह ने संगठन से कई तीखे और सीधे सवाल किए। संजय सिंह ने कहा कि आरएसएस में ‘राष्ट्रीय’ शब्द लगा होने के बावजूद, यह संगठन देश की 85 प्रतिशत आबादी (दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों) का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं करता है।
आप सांसद ने आज सीधा सवाल पूछा कि सौ सालों के इतिहास में एक भी दलित, पिछड़ा या आदिवासी आरएसएस का प्रमुख क्यों नहीं बना? इसके अतिरिक्त, उन्होंने आश्चर्य जताया कि आज तक एक भी महिला को भी संघ का प्रमुख क्यों नहीं बनाया गया। संजय सिंह ने इन तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि आरएसएस एक दकियानूसी, संकुचित सोच वाला संगठन है जो संविधान, आरक्षण, दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के खिलाफ है।
अंबेडकर और संविधान के खिलाफ है संघ, जनता रहे सावधान
संजय ने आरएसएस पर मनुवादी व्यवस्था और जातीय भेदभाव तथा छुआछूत की व्यवस्था में विश्वास रखने का आरोप लगाया और कहा कि यह संगठन बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और उनके संविधान के खिलाफ है। उन्होंने जनता से ऐसे संगठनों से सावधान रहने की अपील की। आप यूपी प्रभारी ने आरएसएस के आजादी के आंदोलन में योगदान पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस सच्चाई को देश की जनता को जानना बहुत जरूरी है। उन्होंने खुलासा करते हुए कहा कि जब देश अंग्रेजों का गुलाम था, तब आरएसएस ने अंग्रेजों का साथ दिया।
क्रांतिकारियों की मुखबिरी की…
यूपी के प्रभानी ने यह भी आरोप लगाया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आरएसएस के लोग हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित कर रहे थे। वहीं संजय सिंह ने शोध का हवाला देते हुए कहा कि आरएसएस ही वह संगठन था जिसने आजादी के आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों की मुखबिरी की और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध तक किया। साथ ही कहा कि ये वही लोग थे जिन्होंने भारत की आन-बान-शान तिरंगे झंडे का विरोध किया था। उन्होंने इस सच को इतिहास का ऐसा काला अध्याय बताया जिसका आरएसएस कभी विरोध नहीं कर सकती है।
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आजादी के आंदोलन में देश से की गद्दारी
इस दौरान संजय सिंह ने प्रधानमंत्री द्वारा आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर टिकट जारी करने और पाठ्यक्रमों में आरएसएस का इतिहास पढ़ाए जाने की खबरों पर चिंता व्यक्त की। आगे कहा कि आरएसएस की तारीफ और कसीदे तो पढ़े जाएंगे, लेकिन लोगों को ये नहीं बताया जाएगा कि आरएसएस एक ऐसा संगठन है, जिसने आजादी के आंदोलन में देश से गद्दारी की थी।
वहीं आप सांसद ने तीखा सवाल किया कि देश को यह क्यों नहीं बताया जाएगा कि आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर 52 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया? साथ ही कहा कि ये संगठन भेदभाव रखने वाला है, इसीलिए आज तक आरएसएस का कोई भी प्रमुख दलित, पिछड़ा, आदिवासी या महिला नहीं हुआ।