आरयू वेब टीम। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियां जनता से मुफ्त में सुविधाएं देने की घोषणा कर रहीं हैं। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले सार्वजनिक कोष से ‘‘अतार्किक मुफ्त सेवाएं’’ वितरित करने या इसका वादा करने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिह्न जब्त करने या उनकी मान्यता रद्द करने का दिशा-निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से मंगलवार को जवाब मांगा।
राजनीतिक दलों को मुफ्त की चीजें बांटने का वादा करने से रोकने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब तमाम राजनैतिक दल ऐसे ही फ्री गिफ्ट देने का वायदा कर रहे हैं तब आपने सिर्फ दो ही पार्टियों का जिक्र याचिका में क्यों किया, बाकियों का क्यों नही? कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब देने को कहा।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये गंभीर मामला है। चुनाव को प्रभावित करता है, लेकिन अदालत के दखल का दायरा बहुत सीमित है। कोर्ट ने आगे कहा कि हमने चुनाव आयोग को इस पर गाइडलाइंस बनाने को कहा लेकिन इलेक्शन कमीशन ने महज एक मीटिंग की। उसका नतीजा क्या रहा, ये पता नहीं।
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चीफ जस्टिस वी एन रमण, जस्टिस ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस प्रकार के लोकलुभावन कदम उठाने पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए, क्योंकि यह संविधान का उल्लंघन है और निर्वाचन आयोग को इसके खिलाफ उचित कार्रवाई करनी चाहिए।