आरयू वेब टीम। थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने शनिवार को 74वें सेना दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली स्थित कैंट में करियप्पा परेड ग्राउंड में सैनिकों को संबोधित करते हुए एक बार फिर चीन को चेतावनी दी है कि भारत के ‘धैर्य की परीक्षा’ लेने की जुर्रत मत करना। सेना प्रमुख ने कहा है कि एलएसी पर एक-तरफा यथास्थिति को किसी कीमत पर बदलने नहीं दिया जाएगा, क्योंकि भारत का ‘धैर्य आत्मविश्वास का प्रतीक’ है।
इस मौके पर जनरल नरवणे ने कहा कि पिछला एक साल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के हालात पर बोलते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि कई इलाकों में चीन की सेना के साथ डिसइंगेजमेंट हो चुका है, जो एक सकारात्मक कदम है, लेकिन किसी भी कीमत पर चीन को एक-तरफा यथास्थिति नहीं बदलने दी जाएगी।
लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के हालात पर थलसेना प्रमुख ने कहा कि पिछले साल भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ के बीच हुए युद्ध विराम समझौते के बाद से हालात काफी हद तक सुधर गए हैं, लेकिन उन्होने कहा कि एलओसी पर अभी भी पाकिस्तान की तरफ 350-400 सैनिक मौजूद हैं, जो घुसपैठ करने की फिराक में हैं। पाकिस्तान की तरफ से ड्रोन से हथियारों की स्मगलिंग अभी भी जारी है। सेना प्रमुख ने कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों के हालात से भी सैनिकों को वाकिफ कराया।
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सेना में महिलाओं का स्वागत करते हुए उन्होने कहा कि इस साल जून से नेशनल डिफेंस एकडेमी यानि एनडीए में महिला-कैडेट्स दाखिला ले सकेंगी। साथ ही उन्होनें कहा कि आर्मी एविएशन में महिलाओं को पायलट बनने की मंजूरी मिल चुकी है। सेना दिवस के मौके पर करियप्पा ग्राउंड में जनरल नरवणे ने परेड कई सलामी ली।
इस मौके पर सेना की अलग-अलग रेजीमेंट और कॉम्बेट यूनिट्स ने मार्च पास्ट में हिस्सा लिया। खास बात है कि मार्च पास्ट में सैनिकों के दस्ते प्रथम युद्ध के बाद से लेकर अबतक भारतीय सेना की अलग अलग यूनिफॉर्म में दिखाई पड़े। साथ ही पहली बार सेना की नई कॉम्बेट यूनिफॉर्म भी दिखाई पड़ी।
बता दें कि आज ही के दिन 1949 में भारतीय सेना को जनरल के एम करियप्पा के तौर पहले भारतीय कमांडर इन चीफ मिले थे, इसीलिए हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाया जाता है. सेना दिवस के मौके पर करियप्पा ग्राउंड में सेना ने 1947-48 के युद्ध से लेकर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक तक की सभी लड़ाईयों और ऑपरेशन्स का रिक्रेएशन प्रदर्शित किया। इस दौरान सेना के वरिष्ठ सैन्य अफसरों के साथ साथ मित्र देशों के राजनियक और डिफेंस-अटैचे भी मौजूद थे।