आरयू संवाददाता,
पीजीआइ। संजय गांधी स्नाकोत्तर अयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) में भर्ती युवक ने शनिवार की भोर में फांसी लगाकर जान दे दी। सुबह सीढ़ियों की रेलिंग से उसकी लाश लटकती देख अस्पताल में हड़कंप मच गया। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पीजीआइ पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। पुलिस को मृतक के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, हालांकि कहा जा रहा है कि युवक दूसरी बार पेट में अल्सर होने की वजह से परेशान था।
पीजीआइ पुलिस के अनुसार मूल रूप से पीलीभीत जिले के सुनगढ़ी निवासी अशोक कुमार गंगवार ने पेट की बीमारी होने पर बीते 19 दिसंबर को अपने बेटे नितिन कुमार (35) को एसजीपीजीआइ के दूसरे तल पर स्थित लीवर ट्रांसप्लांट यूनिट में भर्ती कराया था। उसकी देख-रेख के लिए पिता के अलावा पत्नी सुसुमलता और साला मुकेश भी अस्पताल में ही था।
भोर में तीन बजे तक पत्नी दबाती रही हाथ-पैर
पिता और साला कल रात वार्ड के बाहर सो रहे थे। सुसुमलता ने बताया कि रात तीन बजे तक वो नितिन के हाथ-पैर दबाती रही। इसके बाद उसकी आंख लग गयी। तभी मौका देखकर नितिन वार्ड से निकलने के बाद छठीं मंजिल पर जा पहुंचा और दुपट्टे के फंदे के सहारे सीढ़ी की रेलिंग से लटकर जान दे दी।
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करीब चार बजे आंख खुलने पर पत्नी ने सोचा नितिन बॉथरूम गए होंगे, काफी देर इंतजार के बाद भी नितिन नहीं लौटा तो सुसुमलता ने इसकी सूचना अस्पताल प्रबंधन को देने के साथ ही उसकी तलाश शुरू की। घंटों की तलाश के बाद लोग छठी मंजिल के पास पहुंचे तो सीढ़ी की रेलिंग के सहारे नितिन की लाश लटकर रही थी, जिसके बाद परिजनों में रोना-पीटना मच गया। नितिन के दो बेटे देव (11) व सक्षम (8) हैं।
एसजीपीजीआइ के कार्यवाहक निदेशक प्रो. राजन सक्सेना ने बताया कि नितिन कई सालों से पेट में अल्सर से परेशान था। एक बार पहले भी उसके अल्सर का ऑपरेशन किया गया था। तीन दिन पहले वो दोबार दिखाने आया तो हालत गंभीर देख उसे ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया था।
पांच से दस प्रतिशत केसों में दोबार हो जाता है अल्सर
राजन सक्सेना के मुताबिक अल्सर के मामले में शुरूआती दौर में दवा के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन रोग बढ़ने पर ऑपरेशन इसका इलाज है। वहीं ऑपरेशन करने के बाद भी पांच से दस प्रतिशत मरीजों को इसका दोबारा सामना करना पड़ता है। नितिन के केस में एक बार फिर देर हो गयी थी, इसलिए ऑपरेशन की तैयारी चल रही थी।
ठीक हो जाता नितिन, लेकिन हार गया हिम्मत
एसजीपीजीआई के कार्यवाहक निदेशक ने बताया दोबारा अल्सर होने की बात पता चलते ही नितिन डिप्रेशन में आ गया था। उसने पत्नी से जान देने की बात भी कही थी साथ ही उसके मन में ठीक होने, न होने कि नकारात्मक बात भी घर कर गयी थी, हालांकि ऑपरेशन के बाद वो ठीक हो जाता।
एसजीपीजीआइ की सुरक्षा पर भी उठें सवाल
वहीं नितिन के आत्महत्या करने के बाद एसजीपीजीआइ की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहें हैं। एक मरीज दूसरी से छठी मंजिल पर पहुंचने के बाद फांसी लगाकर जान दे देता है और अस्पताल प्रबंधन न उसे रोक पाता है, और परिसर में लाश लटकने के बाद भी करीब पांच घंटे तक घटना का उसे पता नहीं चलता।
वहीं इस बारे में राजन सक्सेना का कहना था कि छठी मंजिल अभी शुरू नहीं की गयी है, इसलिए वहां अभी कोई आता-जाता नहीं है। उम्मीद है कि नितिन ने जान देने के लिए पहले से ही वो जगह चुन रखी होगी। जबकि भोर में चार बजे वार्ड की नर्स ने नितिन को जाते हुए देखा था, लेकिन उसे लगा कि मरीज बाथरूम जा रहा होगा।
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