आरयू वेब टीम। हाई कोर्ट ने आज महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह के इस्तेमाल पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर उनकी अर्जी को खारिज करने के एकल न्यायाधीश के निर्णय को चुनौती दी गई थी। उद्धव ने दावा किया कि एकल न्यायाधीश वाली पीठ का 15 नवंबर का फैसला ‘त्रुटिपूर्ण’ है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
इस फैसले के तहत न्यायाधीश ने निर्वाचन आयोग को कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश भी दिया था। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि हम उपयुक्त आदेश पारित करेंगे। उद्धव ठाकरे की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि चुनाव चिन्ह पर रोक लगाने संबंधी आदेश जारी करते समय निर्वाचन आयोग ने उनके मुवक्किल का पक्ष नहीं सुना। उन्होंने कहा कि आयोग के इतिहास में कभी किसी पक्ष को सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं किया गया है।
एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि पार्टी में ‘फूट’ के बाद शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न पर रोक लगाने के निर्वाचन आयोग के फैसले में ‘प्रक्रियात्मक उल्लंघन’ जैसी कोई बात नहीं है। पीठ ने कहा था कि निर्वाचन आयोग ने उपचुनावों की घोषणा के कारण चुनाव चिह्न के आवंटन की आवश्यकता को देखते हुए यह आदेश पारित किया था और याचिकाकर्ता, जिसने जरूरी दस्तावेज पेश करने के लिए बार-बार समय मांगा, अब न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए आयोग की आलोचना नहीं कर सकता।
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एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था, महाराष्ट्र में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल ‘शिवसेना’ के सदस्यों के बीच फूट है। एक गुट का नेतृत्व एकनाथराव संभाजी शिंदे कर रहे हैं, जबकि दूसरे गुट की कमान उद्धव ठाकरे संभाल रहे हैं। दोनों खुद को मूल शिवसेना का अध्यक्ष बताते हैं और पार्टी के ‘धनुष एवं बाण’ चुनाव चिन्ह पर दावा जताते हैं। उद्धव ने अपनी याचिका में दावा किया है कि पार्टी के नेतृत्व को लेकर कोई विवाद नहीं है और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने खुद स्वीकार किया था कि उद्धव शिवसेना के उचित तरीके से चुने गए अध्यक्ष हैं और बने रहेंगे। उन्होंने दलील दी कि ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि शिवसेना के दो प्रतिद्वंद्वी गुट हैं।