प्रवासी मजदूरों से जुड़ी याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने किया इंकार, कहा हम भला कैसे रोकें

नीट पीजी में आरक्षण

आरयू वेब टीम। प्रवासी श्रमिकों को उनके घर वापस भेजने की याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई से इनकार कर दिया है। वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने प्रवासी मजदूरों की ट्रेन और सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों का हवाला देते हुए यह याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत अखबार की खबरों के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती, मामले में राज्यों को कार्रवाई करनी चाहिए।

याचिका पर पीठ ने कहा कि हम इसे कैसे रोक सकते हैं? इस बारे में राज्य सरकारें फैसला करें। याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा कि कल 16 मजदूर हाइवे पर भी मरे हैं। एमपी के उना और यूपी के सहारनपुर में मजदूर की मौत हुई है। जस्टिस एलएन राव ने कहा कि लोग सड़क पर चल रहे हैं तो उन्हें कैसे रोका जा सकता है। साथ ही जस्टिस संजय किशन कौल ने इस दौरान कहा कि याचिकाकर्ता की याचिका न्यूजपेपर पर आधारित है। आप कैसे उम्मीद करते हैं कि कोर्ट इस तरह का आदेश पारित करेगा।

इस मामले में सरकारों को काम करने दिया जाए और ऐक्शन लेने दिया जाए। लोग सड़क पर जा रहे हैं। पैदल चल रहे हैं। नहीं रुक रहे तो हम क्या सहयोग कर सकते हैं? इस पर न्यायमूर्ति राव ने भी कहा कि अदालत के लिए ये असंभव है कि वह इस बात की निगरानी करे कि कौन चल रहा है और कौन नहीं।

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वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या श्रमिकों को घर वापस जाने से रोकने का कोई साधन है। इस पर मेहता ने कहा कि राज्य अंतरराज्यीय परिवहन प्रदान कर रहे हैं, लेकिन अगर लोगों को गुस्सा आता है और परिवहन के इंतजार के बजाय पैदल चलना शुरू किया जाए तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हम केवल अनुरोध कर सकते हैं कि लोगों को चलना नहीं चाहिए। लोगों को रोकने के लिए बल प्रयोग करना ठीक नहीं होगा। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि सरकार प्रवासी मजदूरों की पहले से मदद कर रही है। मजदूर अपनी बारी का इंतजार भी नहीं कर रहे हैं और पैदल अपने घर को चलने लगते हैं। सभी जाना चाहते हैं। उन्हें पैदल जाने के बजाय अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।

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