आरयू ब्यूरो, लखनऊ/प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अब्बास अंसारी के विरुद्ध आइपीसी की धाराओं में जारी सम्मन आदेश अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है। साथ ही अधीनस्थ अदालत को नए सिरे से सम्मन जारी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दाखिल चार्जशीट और केस कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया।
ये आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने अब्बास अंसारी की याचिका पर अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय और सरकारी वकील को सुनने के बाद याचिका निस्तारित करते हुए दिया। याची पर विधानसभा चुनाव 2022 में आचार संहिता उल्लंघन के आरोप में मऊ के दक्षिण टोला थाने में एफआइआर दर्ज की गई थी। इस संबंध में दाखिल चार्जशीट पर मामला एमपी एमएलए स्पेशल कोर्ट मऊ में विचाराधीन है।
वही याचिका में पुलिस की चार्जशीट और केस कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई थी। आरोप है कि चुनाव प्रचार के लिए गाड़ियों की कोई अनुमति नहीं ली गई थी, लेकिन इसके बावजूद चुनाव के दौरान वाहनों का काफिला निकाला गया था। इसी को लेकर 12 फरवरी 2022 को अब्बास के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
अब्बास अंसारी के अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय का कहना था कि याची के खिलाफ राजनीतिक द्वेषवश प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। याची ने गाड़ियों का काफिला नहीं निकाला। वह केवल जनसंपर्क अभियान पर थे, जिन गाड़ियों को प्रचार में ले जाने की अनुमति दी गई थी, उन्हीं को ले जाया गया था।
कोर्ट ने कहा कि धारा 171 एच के तहत अपराध नहीं बनता, इसलिए धारा 188 के तहत जारी सम्मन आदेश अवैध है। धारा 171 एच का अपराध धारा 195 से बाधित है। इसमें अधिकारी की शिकायत पर परिवाद दाखिल किया जा सकता है।
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वहीं पुलिस की चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट का संज्ञान लेना विधि सम्मत नहीं है, हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि यह नहीं कह सकते कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 133 का अपराध नहीं बनता है, इसलिए इस मामले में चार्जशीट व केस कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती। इसी के साथ कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मामले में चार्जशीट व केस कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया।