आरयू वेब टीम। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने घोषणा की कि उनकी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का 20 मार्च को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में विलय हो जाएगा। इस विलय का मकसद दशकों पहले जनता दल से अलग हुए दलों को फिर से एक करना है। वहीं शरद यादव भी स्वास्थ्य कारणों से राजनीति में अब कम सक्रिय हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से अलग होने के बाद लोकतांत्रिक जनता दल किसी भी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई।
दूसरी ओर चारा घोटाले में नाम आने पर लालू यादव 1997 में जनता दल से निकल गए थे। इसके बाद उन्होंने आरजेडी का गठन किया। मौजूदा वक्त में लालू भी कई मामलों में सजा काट रहे हैं। उनकी पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में काफी जोर लगाया, लेकिन वो सत्ता तक नहीं पहुंच पाई।
अब आरजेडी और एलजेडी का विलय शरद यादव और लालू यादव के राजनीतिक करियर के विराम के तौर पर भी देखा जा रहा है। विलय के मामले में शरद यादव ने कहा कि देश में मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुए जनता परिवार को एक साथ लाने के मेरे नियमित प्रयासों की पहल के रूप में ये कदम (विलय) जरूरी हो गया है।
साथ ही कहा कि लोग एक मजबूत विपक्ष की तलाश में हैं। 1989 में अकेले जनता दल के पास लोकसभा में 143 सीटें थीं। सामाजिक न्याय के एजेंडे ने वर्षों में पार्टी के विघटन के साथ अपनी गति खो दी है। अब इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
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गौरतलब है कि बिहार में लालू परिवार का राज चल रहा था। 2005 में उसे खत्म करने के लिए शरद यादव ने एक नया प्लान बनाया और फिर नीतीश कुमार के साथ चले गए। 2017 में जेडीयू ने उनके ऊपर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया और उन्हें निकाल दिया। इसके बाद एलजेडी का गठन हुआ। शरद यादव की बेटी ने भी बिहार में 2020 का विधानसभा चुनाव आरजेडी के टिकट पर लड़ा था, लेकिन वो हार गईं।