आरयू वेब टीम।
उच्चतम न्यायालय ने आज लोक सेवकों के खिलाफ कठोर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के दुरुपयोग पर विचार करते हुए दिशा निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज ऐसे मामलों में फौरन गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
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न्यायालय ने कहा कि एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज मामलों में किसी भी लोक सेवक की गिरफ्तारी से पहले न्यूनतम पुलिस उपाधीक्षक रैंक के अधिकारी द्वारा प्राथमिक जांच जरूर करायी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कहा कि लोक सेवकों के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत देने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
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पीठ ने यह भी कहा कि एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज मामलों में सक्षम प्राधिकार की अनुमति के बाद ही किसी लोक सेवक को गिरफ्तार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है। महाराष्ट्र की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसला सुनाया।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस दौरान कुछ सवाल भी उठाएं हैं। मालूम हो कि एससी-एसटी एक्ट के तहत कई फर्जी मामले सामने आ चुके हैं। इसमें लोगों का आरोप है कि कुछ लोग अपने फायदे और दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं।
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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के साथ दूसरे समुदाय के व्यक्ति से किसी बात को लेकर मामूली कहासुनी पर भी एससी-एसटी एक्ट लग जाता था। एक्ट के नियमों के तहत बिना जांच किये आरोपित की तत्काल गिरफ्तारी हो जाती थी, जिससे आरोपित को अपनी सफाई के साथ ही बचाव के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया।