आरयू वेब टीम। देश की सर्वोच्च अदालत ने शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की उस याचिका पर सोमवार को केंद्र से जवाब मांगा है, जिसमें देश भर की इमारतों और धार्मिक स्थानों पर चांद तारे वाला हरे रंग का झंडा फहराने पर रोक लगाने की मांग की गई है। रिजवी का दावा है कि इस झंडे का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। दरअसल, ये पाकिस्तान की पार्टी मुस्लिम लीग का झंडा है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की ओर से पेश हुए वकील से याचिका की एक प्रति अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को देने के लिए कहा ताकि वह केंद्र की तरफ से जवाब दे सकें। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अब दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।
यह भी पढ़ें- वसीम रिजवी पर नहीं हुई सख्त कार्रवाई तो लखनऊ से दिल्ली तक होगा विरोध: कल्बे जवाद
आज वसीम की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील एसपी सिंह ने कहा कि इस झंडे के चलते देश भर में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा होती रहती है। जस्टिस ए के सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वो इस मसले पर सरकार से निर्देश लें।
साथ ही जस्टिस सीकरी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “कई बार सरकार के लिए किसी मसले पर कदम उठाना मुश्किल होता है। इस बात का डर होता है कि लोग उसके कदम को दुर्भावनावश उठाया हुआ मान लेंगे। अब ये मामला कोर्ट में है। अगर आपको इस मसले पर सरकार अपना पक्ष रखना चाहती है तो रख सकती है।”
यह भी पढ़ें- वसीम रिजवी के विवादित बोल मदरसों ने पैदा किए हैं आतंकी
वहीं रिजवी की याचिका में कहा गया है कि इस झंडे का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। पैगंबर मोहम्मद जब मक्का गए, तब उनके हाथ में सफेद झंडा था। मध्य युग में भी इस्लामिक फौजों के अलग-अलग झंडे होते थे। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि साल 1906 में ढाका में इसे मुस्लिम लीग के झंडे के तौर पर डिजाइन किया गया था। बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने इसमें मामूली बदलाव कर इसे राष्ट्रीय ध्वज बनाया।
इतना ही नहीं याचिका में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम इलाकों में अज्ञानतावश लोग ये झंडा लगाते हैं। इसे अकसर हिन्दू पाकिस्तान का झंडा समझ लेते हैं। ये सांप्रदायिक तनाव की वजह बनता है।