आरयू वेब टीम।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने के उसके फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने नेशनल अयप्पा डिवोटीज एसोसिएशन की अध्यक्ष शैलजा विजयन की दलील पर विचार किया।
विजयन ने अपने वकील मैथ्यूज जे नेदुम्पारा के माध्यम से दायर की याचिका में दलील दी कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने प्रतिबंध हटाने का जो फैसला दिया वह पूरी तरह असमर्थनीय और तर्कहीन है।
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मालूम हो कि कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 28 सितंबर को चार एक के बहुमत से दिए फैसले में कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाना लैंगिक भेदभाव है और यह परम्परा हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है।
बता दें कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री से बैन हटाए जाने को लेकर जहां केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पक्ष में नजर आ रही है तो दूसरी तरफ मंदिर के तंत्री (मुख्य पुजारी) कोर्ट के इस फैसले से नजारा हैं। उन्होंने कहा कि केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन द्वारा बुलाई गई बैठक में भी वो भाग नहीं लेंगे।
यह बैठक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के संदर्भ में बुलाई गई थी, जिसमें महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी, लेकिन मंदिर के पुजारी कंतारारु मोहनारु ने यह कहकर बैठक में जान से मना कर दिया की, पहले हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने के संबंध में राज्य सरकार का अंतिम निर्णय सुनने दें। एक बार यह ज्ञात हो जाने के बाद, हम तय करेंगे कि क्या करना है। मंदिर परिसर में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करना मंदिर की प्रथाओं का उल्लंघन है।
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