आरयू वेब टीम। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सत्ताधारी पार्टी अक्सर ही जय श्रीराम के नारे न लगाने को लेकर हमलावर रहती है। वहीं ‘जय श्रीराम’ के नारे को लेकर बयानबाजी के बीच नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘मां दुर्गा’ की तरह ‘जय श्रीराम’ उद्घोष बंगाली संस्कृति से नहीं जुड़ा है। उन्होंने इसके हो रहे गलत इस्तेमाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बंगाल में इसका इस्तेमाल लोगों को पीटने के बहाने के तौर पर किया जा रहा है। अमर्त्य सेन ने जाधवपुर यूनिवर्सिटी में कहा कि ‘मां दुर्गा’ बंगाल के लोगों के जीवन में सर्वव्याप्त हैं।
अमर्त्य सेन ने कहा कि आजकल बंगाल में राम नवमी का त्योहार भी अधिक मनाया जा रहा है जो पहले उन्हें कभी नहीं देखने को मिलता था। नोबेल पुरस्कार विजेता ने आगे कहा, कि ‘मैंने अपनी चार साल की पोती से पूछा कि तुम्हारे पसंदीदा भगवान कौन हैं? उसने मां दुर्गा के बारे में बताया। मां दुर्गा हमारे जीवन में सर्वव्याप्त हैं।’ अर्थशास्त्री ने कहा, ‘मुझे लगता है कि जय श्रीराम जैसे नारों को लोगों को पीटने के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।’
वहीं गरीबी पर बोलते हुए, सेन ने कहा कि केवल गरीब लोगों की आय के स्तर बढ़ने से उनकी हालत में सुधार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा से उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा।
बता दें कि पश्चिम बंगाल में कुछ महीनों से जय श्री राम का नारा राजनीतिक बहस के दायरे में आ गया है। राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि बीजेपी लोगों का धुव्रीकरण करने और साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिए जय श्री राम के नारे का इस्तेमाल कर रही है। लोकसभा चुनाव से लेकर हाल तक की बीजेपी की रैलियों, सभाओं में जय श्री राम का नारा प्रमुखता से लगाया जाता रहा है।
आम लोगों से ज्यादा यह नारा सियासी गलियारों में गूंजता दिख रहा है। बंगाल में जय श्री राम का नारा बीजेपी की पहचान का पर्याय बन गया है और इस नारे को लगाने वाले की पहचान भारतीय जनता पार्टी के समर्थक के तौर पर होती है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तक को कई बार लोग ‘जय श्री राम’ के नारे से चिढ़ाते नजर आ चुके हैं।