आरयू वेब टीम। भाजपा में रहकर अपनी ही पार्टी व प्रधानमंत्री पर सवाल उठाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा शनिवार को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उन्होंने कोलकाता स्थिति टीएमसी के दफ्तर में पार्टी की सदस्यता ली। पश्चिम बंगाल चुनाव से ठीक पहले यशवंत सिन्हा ने यह फैसला लिया है।
टीएमसी ज्वाइन करने के बाद यशवंत सिन्हा ने कहा कि प्रजातंत्र का मतलब होता है कि सरकार के प्रतिनिधि 24 घंटे जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें। देश का अन्नदाता पिछले तीन महीने से दिल्ली की सरहद पर बैठा है और किसी को कोई चिंता नहीं है। देश में शिक्षा-स्वास्थ्य दुर्दिन से गुजर रहे हैं, लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है!
उन्होंने आरोप लगाया कि देश में इस वक्त राज कर रही रूलिंग पार्टी का एक ही मकसद है कि किसी भी तरह चुनाव जीतो और अपनी विजय पताका फहराते जाओ। आज की भाजपा सरकार जनता की जरूरतें पूरा करने के बजाय उन्हें कुचलने में विश्वास करती है। उन्होंने दावा किया कि अटल जी और आज के समय की बीजेपी में जमीन-आसमान का अंतर है। उस जमाने में सभी दलों और आम लोगों की सुनी जाती है, लेकिन आज सुनाई जाती है।
अटल जी की इच्छा कभी किसी को दबाने की नहीं
यशवंत सिन्हा ने कहा कि अटल जी के समय को देखें तो उस वक्त कर्नाटक में जनता दल एस, कश्मीर में पीडीपी, बंगाल में टीएमसी, पंजाब में अकाली दल, बिहार में जेडीयू, महाराष्ट्र में शिवसेना समेत देश की तमाम बड़ी पार्टियों के साथ तालमेल किया। उन्होंने कहा कि अटल जी की इच्छा कभी किसी को दबाने की नहीं रही। वे सबको साथ लेकर चलते थे, लेकिन आज कोई भी इनके साथ नहीं है। यहां तक कि अब अकाली दल भी इनका साथ छोड़ गए हैं।
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बता दें कि बिहार के पटना में जन्मे और शिक्षित हुए सिन्हा ने 1958 में राजनीति शास्त्र में अपनी मास्टर्स (स्नातकोत्तर) डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में 1960 तक इसी विषय की शिक्षा दी। यशवंत सिन्हा ने ये कहते हुए भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया कि वे 2009 के आम चुनावों में हार के पश्चात पार्टी द्वारा की गई कार्रवाई से असंतुष्ट थे।
राजनीतिक करियर की बात करें तो यशवंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। 1986 में उनको पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य चुना गया। जून 1996 में वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च 1998 में उनको वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। 22 मई 2004 तक संसदीय चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक वे विदेश मंत्री रहे।